(((( हरि कौ ऐसोई सब खेल ))))
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जिस दिन कान्हा खड़े हुए मैया के सब मनोरथ पूर्ण हुये…
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आज मैया ने गणपति की सवा मनि लगायी है। रात भर बैठ लडडू तैयार किये..
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सुबह कान्हा को ले मन्दिर गयी पूजा करने बैठी और कान्हा को उपदेश देने लगी।
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कान्हा! ये जय जय का भोग बनाया है पूजा करने पर ही खाना होगा।
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सुन कान्हा ने सिर को हिलाया है।
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ये कह मैया जैसे ही जाने को मुड़ी इतने में ही गनेश जी की सूंड उठी उसने एक लडडू उठाया है कान्हा को भोग लगाया है।
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कान्हा मूँह चलाने लगे… जैसे ही मैया ने मुड़कर देखा… गुस्से से आग बबूला हुई.. क्यों रे लाला?
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मना करने पर भी क्यों लडडू खाया है.. इतना सब्र भी ना रख पाया है…
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मैया मैने नही खाया.. ये तो गनेश जी ने मुझे खिलाया.. रोते कान्हा बोल उठे।
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सुन मैया डपटने लगी.. वाह रे! अब तक तो ऐसा हुआ नही… इतनी उम्र बीत गयी कभी गनेश जी ने मुझको तो कोई ऐसा फ़ल दिया नही…
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अगर सच मे ऐसा हुआ है तो अपने गनेश से कहो एक लडडू मेरे सामने तुम्हे खिलायें।
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नही तो लाला आज बहुत मै मारूँगी झूठ भी अब बोलने लगा है। अभी से कहाँ से ये लच्छन लिया है।
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सुन मैया की बातें कान्हा ने जान लिया मैया सच मे नाराज हुई कन्हैया रोते हुये कहने लगे।
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गनेश जी एक लडडू और खिला दो नही तो मैया मुझे मारेगी।
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इतना सुनते ही गनेश जी की सूंड ने एक लडडू और उठाया और कान्हा को भोग लगाया।
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इतना देख मैया गश खाकर गिर गयी.. और ये तो कान्हा पर बाजी उल्टी पड़ गयी।
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झट भगवान ने रूप बदल माता को उठाया.. मूँह पर पानी छिडका.. होश मे आ मैया कहने लगी।
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आज बड़ा अचरज देखा.. लाला गनेश जी ने तुमको लडडू खिलाया है।
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सुन कान्हा हँस कर कहने लगे.. मैया मेरी तू बड़ी भोली है।
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तूने जरूर कोई स्वप्न देखा होगा.. इतना कह कान्हा ने मूँह खोल दिया… अब तो वहां कुछ ना पाया।
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भोली यशोदा ने जो कान्हा ने कहा उसे ही सच माना…
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नित्य नयी नयी लीलाएं करते हैं। मैया का मन मोहते हैं.. मैया का प्रेम पाने को ही तो धरती पर अवतरित होते हैं।।
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))