हनुमानजी समुद्र लाँघ गये।
किसी ने तुलसीदास जी से कहा कि बड़े आश्चर्य की बात है कि हनुमानजी सौ योजन का समुद्र लाँघ गये ।

तुलसीदास जी बोले, आश्चर्य बिल्कुल नहीं।

क्यों?
हनुमानजी पार जाते हुए दिखाई दे रहे थे, लेकिन कमाल हनुमानजी का नहीं था।

फिर?
कमाल तो उसका था जो दिखाई नहीं दे रहा था । कौन?

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।

श्री हनुमानजी समुद्र लाँघ गये ।
आश्चर्य नहीं है, क्यों ?
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। अब लगता है, मुद्रिका मुख में थी, इसलिए हनुमान जी समुद्र लाँघ गये, तो आश्चर्य नहीं है।
तो हनुमानजी की महिमा नहीं है।
फिर किसकी महिमा है? मुद्रिका की।
लेकिन, तुलसीदास जी बोले, मुद्रिका की नहीं । फिर किसकी महिमा है?
बोले, हनुमानजी ने मुद्रिका मुख में रखी।बुद्धिमताम् वरिष्ठम्, इतने ज्ञानी।
मुद्रिका कोई मुख में रखने की चीज है?
श्री हनुमानजी से किसी ने कहा कि मुद्रिका मुख में क्यों रखे हो, यह कोई मुख में रखने की चीज है?
हनुमानजी ने कहा, मुद्रिका तो मुख में रखने की चीज नहीं है, पर मुद्रिका में जो लिखा है, वह मुख में ही रखने की चीज है।

तब देखी मुद्रिका मनोहर ।
राम नाम अंकित अति सुंदर ।।

मुद्रिका में लिखा था राम नाम ।
तो हनुमानजी ने मुद्रिका मुख में रखी, अर्थात् राम नाम मुख में रखा तो पार हो गये कि नहीं?
कितना बढ़िया उपदेश है?
हनुमानजी ने राम नाम मुख में रखा तो सागर पार कर गये, अगर हम लोग राम नाम मुख में रखेंगे, तो क्या संसार सागर से पार नहीं चले जायेंगे। दृढ़ विश्वास चाहिये
जय श्री राम

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