भगवान शिव कैलाश पर्वत पर रहते थे। वहीं रहकर वे कई जगह आकाश मार्ग से भ्रमण करते थे। इस दौरान विशेष परिस्थितियों में जहां भी उन्होंने धरती पर कदम रखे, वहां उनके पैरों के निशान बन गए। भारत में ऐसे कई निशान हैं। भगवान शिव के पैरों के निशान के दर्शन करना अपने आप में अद्भुत अनुभव होता है। आओ, जानते हैं कि कहां-कहां भगवान शिव ने धरती पर अपने कदम रखे। उनमें से कुछ प्रमुख 6 पद चिन्हों के बारे में प्रस्तुत है संक्षिप्त में जानकारी।
1. श्रीलंका में शिव के पद चिन्ह
श्रीलंका में एक पर्वत है जिसे श्रीपद चोटी भी कहा जाता है। अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान इसका नाम उन्होंने आदम पीक रख दिया था। जैसे गोरीशंकर का नाम बदलकर एवरेस्ट रख दिया। हालांकि इस आदम पीक का पुराना नाम रतन द्वीप पहाड़ है। इस पहाड़ पर एक मंदिर बना है। हिन्दू मान्यता के अनुसार यहां देवों के देव महादेव शंकर के पैरों के निशान हैं इसीलिए इस स्थान को सिवानोलीपदम (शिव का प्रकाश) भी कहा जाता है।
यह पदचिन्ह 5 फिट 7 इंच लंबे और 2 फिट 6 इंच चौडे हैं। यहां 2,224 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस ‘श्रीपद’ के दर्शन के लिए लाखों भक्त और सैलानी आते हैं। यहां से एशिया का सबसे अच्छा सूर्योदय भी देखा जा सकता है। ईसाइयों ने इसके महत्व को समझते हुए यह प्रचारित कर दिया कि ये संत थॉमस के पैरों के चिह्न हैं। बौद्ध संप्रदाय के लोगों के अनुसार ये पद चिह्न गौतम बुद्ध के हैं। मुस्लिम संप्रदाय के लोगों के अनुसार पद चिह्न हजरत आदम के हैं। कुछ लोग तो रामसेतु को भी आदम पुल कहने लगे हैं।
सवाल यह उठता है कि इस क्षेत्र में इतने बड़े पद के चिह्न बुद्ध या संत थॉमस के कैसे हो सकते हैं? क्या उनके पैर एड़ी से लेकर अंगूठे या पंजों तक एक सामान्य आदमी के पैरों से पांच गुना बड़े थे?
इस पहाड़ के बारे में कहा जाता है कि यह पहाड़ ही वह पहाड़ है, जो द्रोणागिरि का एक टुकड़ा था और जिसे उठाकर हनुमानजी ले गए थे। श्रीलंका के दक्षिणी तट गाले में एक बहुत रोमांचित करने वाले इस पहाड़ को श्रीलंकाई लोग रहुमाशाला कांडा कहते हैं। हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि वह द्रोणागिरि का पहाड़ था। द्रोणागिरि हिमालय में स्थित था। कहते हैं कि हनुमानजी हिमालय से ही यह पहाड़ उठाकर लाए थे, बाद में उन्होंने इसे (रहुमाशाला कांडा) को यहीं छोड़ दिया। मान्यताओं के अनुसार यह द्रोणागिरि पहाड़ का एक टुकड़ा है।
2. थिरुवेंगडू में है रुद्र पद :
तमिलनाडु के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्वर का मंदिर है, जहां भगवान शिव के पद चिह्न हैं जिसे ‘रुद्र पदम’ कहा जाता है। यह क्षेत्र नागपट्टिनम जिले में कुम्भकोणम से 59 किलोमीटर, मइलादुतुरै से 23 किलोमीटर और श्रीकाली पूम्पुहार रोड से 10 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
3. जागेश्वर में हैं शिव के पद चिह्न :
उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी पर लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में एक ऐसा स्थान है, जहां शिव के पद चिह्न को साक्षात देखा जा सकता है। मान्यता है कि जब पांडव स्वर्ग जा रहे थे तब उनकी इच्छा शिवजी के दर्शन और उनके सान्निध्य में रहने की हुई, लेकिन शिवजी कैलाश पर्वत जाकर ध्यान करना चाहते थे। पांडव इसके लिए राजी नहीं हुए। तब शिवजी ने भीम से विश्राम करने के लिए कहा और वे चकमा देकर कैलाश चले गए। जहां से उन्होंने कैलाश के लिए प्रस्थान किया था वहां उनके एक पैर का चिह्न बना हुआ है।
कहते हैं कि उन्होंने अपना दूसरा पैर कैलाश मानसरोवर क्षेत्र में रखा था। हालांकि उस पैर के बारे में कोई जानकारी नहीं है कि वह कहां रखा था। यह निशान करीब 1 फुट लंबा है जिसमें अंगूठे और अंगुलियों के निशान भी स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। यह निशान पत्थर पर काफी गहरा बना हुआ है। जानकार लोग कहते हैं कि एड़ी का यहां दबाव होने के कारण यह पता चलता है कि दूसरा पैर उठा हुआ होगा। जब कोई पैर जोर से रखा जाता है तो पीछे की ओर गहरा निशान हो जाता है।
5,000 वर्ष पूर्व मोक्ष प्राप्ति के लिए पांडवों को शिवजी ने दर्शन दिए थे। भगवान शिव भीम के साथ काफी दिनों तक रहे और वे चाहते थे कि भीम और अन्य पांडव अब चले जाएं लेकिन पांडव जब इसके लिए राजी नहीं हुए तो भगवान शिव उन्हें चकमा देकर कैलाश चले गए थे। पद चिह्न के पास यहां भीम का एक मंदिर बना हुआ है। मंदिर में मूर्ति नहीं है। पहले यहां भीम की मूर्ति होती थी, लेकिन अब वह गायब हो गई या उसे कोई चुरा ले गया? यह कोई नहीं जानता। 8वीं सदी में एक राजा ने यह मंदिर बनवाया था।
4. शिव पद चिन्ह थिरूवन्नामलाई :
शिव के यह निशान तमिलनाडु राज्य के थिरूवन्नामलाई में एक स्थान पर हैं।
5. रुद्रपद तेजपुर, असम :
शिव के पैरों के यह निशान असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में स्थित है। यहां उनके दाएं पैर का निशान है।
6. शिवपद, रांची :
झारखंड के रांची में पहाड़ी पर स्थित नाग मंदिर में स्थित है। तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों के लिए यह मंदिर आकर्षण का केंद्र हैं जहां श्रावण माह में एक नाग मंदिर में ही डेरा डाल देता हैं। इसे देखने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
दरअसल, रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलो मीटर की दुरी पर ‘रांची हिल’ पर शिवजी का अति प्राचीन मंदिर स्थित है जिसे की पहाड़ी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर शहीद क्रांतिकारियों से भी जुड़ा हुआ है। पहाड़ी बाबा मंदिर का पुराना नाम टिरीबुरू था जो आगे चलकर ब्रिटिश हुकूमत के समय फांसी टुंगरी में परिवर्तित हो गया क्योकि अंग्रेजों के राज में देश भक्तों और क्रांतिकारियों को यहां फांसी पर लटकाया जाता था।
पहाड़ी बाबा मंदिर परिसर में मुख्य रूप से सात मंदिर है। भगवान शिव का मंदिर, महाकाल मंदिर, काली मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, हनुमान मंदिर और नाग मंदिर। पहाड़ी पर जितने भी मंदिर बने हैं उनमे नागराज का मंदिर सबसे प्राचीन है। माना जाता है की छोटा नागपुर के नागवंशियों का इतिहास यही से शुरू हुआ है। ऐसी मान्यता हैं कि यहां पर शिव ने अपने पैर रखे थे।