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धर्मं

सब ग्रंथों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है

बड़े भाग्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है (कठिनता से मिलता है)। यह साधन का धाम और मोक्ष का दरवाजा है। इसे पाकर भी जिसने परलोक न बना लिया,॥

मित्रों, क्या हमने एकांत में बैठकर कभी यह सोचा है या सोचने का प्रयास भी किया है, की मानव जन्म हमें क्यों मिला है? चोरासी लाख योनियों में भ्रमण करते हुये और इस लम्बी यात्रा में जलचर, नभचर, थलचर और वनस्पति बनने के बाद हमें मानव जीवन मिला है, मानव जीवनरूपी यह अदभुत मौका परम् कृपालु और परम् दयालु परमपिता ने हम पर कृपा और दया करके प्रदान किया है।

मानव जीवनरूपी यह मौका इसलिये अदभुत है, क्योंकि? चोरासी लाख योनियों के चक्रव्यहू से सदा सदा के लिये छुटने का, मुक्त होने का यह एकमात्र साधन है, पर क्या हमारा प्रयास इस उद्देश्य पूर्ति हेतु हो रहा है, या हम व्यर्थ की दुनियादारी में ही उलझे पड़े हैं, हमें समझना होगा की श्रेष्ठत्तम मार्ग यह है की दुनियादारी में कम उलझते हुये मानव जीवन के उद्देश्य पूर्ति के लिये प्रयास करना।

दुनियादारी में कम उलझने का अर्थ है की सबसे समभाव, सामंजस्य रखते हुयें जहाँ जरुरत नहीं हो वहां व्यर्थ के पचड़े में नहीं पड़ना, जहाँ जरूरत हो वहाँ बहुत संक्षिप्त दुनियादारी रखना, क्योंकि यह संक्षिप्त दुनियादारी उस बड़ी दुनियादारी से बहुत अच्छी है जिसे रखने में इतना समय, आयु और श्रम व्यर्थ हो जाता है, मानव जीवन की इस खटपट भरी दुनियादारी के कारण हमारे मानव जीवनरुपी उद्देश्य पूर्ति हेतु हमारे पास समय, आयु और श्रमशक्ति बचता ही नही, और इस तरह हम मानव जीवनरूपी एक सुनहरा अवसर व्यर्थ ही गवा देते हैं।

सज्जनों!मानव जीवन की उद्देश्य पूर्ति हेतु सर्वोत्तम साधन प्रभु-भक्ति है, भक्तिमार्ग मानव जीवन को सफल करने का, मानव जीवन की उद्देश्य पूर्ति का, चौरासी लाख योनियों के चक्रव्यहू से छुटने का और परमानन्द की प्राप्ति का सुगम मार्ग हैं, परमानन्द सांसारिक सुख से बहुत ऊंचा आनंद और उससे भी बहुत बहुत ऊंचा परमानन्द जो भक्तिमार्ग से पाने का श्रेष्ठत्तम मार्ग है।

पर मानव का दुर्भाग्य देखियें की दुनियादारी में पड़ सांसारिक सुख को सब कुछ मान उसी में लिप्त रहने में अपना सौभाग्य एवं अपने मानव जीवन की सफलता समझ बैठा है, हमारे बुजुर्गों से यह कहावत सुनी है कि तालाब के मेंढक को नदी और महासागर की भव्यता का पता ही नहीं होता, वह तालाब को ही सबकुछ मान बैठा है, हमने भी दुनियादारी और सांसारिक सुख के तालाब को ही सबकुछ मान लिया है।

दोस्तों, बडे अचरज की है कि हम अभी भी भक्तिरूपी नदी जिसका विलय प्रभुरुपी महासागर में होता है उससे अनभिज्ञ हैं, दूसरी कहावत भी सुनी है कि अगर हमने आम खाया ही नहीं तो हम आम के स्वाद को कभी समझ ही नहीं पायेगे, क्योंकि खाने से ही वह स्वाद समझ में आता है, किसी के समझाने से आम की मिठास कभी समझ में नहीं आ सकती, अपितु स्वम के अनुभव से ही आती है, ऐसे ही प्रभु भक्ति में गोता लगाने पर आनंद का आभास और फिर भक्ति में तीव्रता आने पर परमानन्द का परम आभास को स्वयं अनुभव करके ही जाना जा सकता है।

इसलिये हमें दुनियादारी करते हुये और सांसारिक सुख भोगते हुए तालाब के मेंढक बनकर नहीं रहना चाहिये, अपितु हमें भक्तिमार्ग द्वारा आनंद और परमानन्द की सुखद अनुभूति प्राप्त करने के लिये प्रयासरत होना चाहिये, यही प्रभु साक्षात्कार की और ले जाने वाला मार्ग है, यही चेतन तत्व रूपी जीव का शिवतत्व में विलय का मार्ग भी है, और सबसे अहम् बात यह है कि मानव जीवन के उद्देश्य पूर्ति का भी यही मार्ग है।

भाई-बहनों मेरे द्वारा भेजे गये अध्यात्म लेख मात्र एक पोस्ट नहीं है, यह कोई मात्र किस्सा कहानी आप सभी को सुनाने के लिये नहीं भेजता, बल्कि इस लेखों का मूलभूत उद्देश्य है- आप समस्त भगवत् जिज्ञासुओं को अपने आप से मिलाना, आप के सोये हुये संस्कारों को जगाना, आपको पूर्ण जाग्रत करना ब्रह्म का परिचय और पहचान कराना, तत्पश्चात् आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म को मिलाना, और अध्यात्म की सभी प्रकार की पूरी जानकारी देना।

मानव जीवन का उद्देश्य आप सभी साधु-संतों के श्रीमुख से सुनते आ रहे हैं कि जीवन का उद्देश्य मोक्ष है, जहाँ कहीं भी आप सुने होंगे जिस किसी महात्माओं के उपदेश में सुनते होंगे, इतना तो प्राय: सब कहते होंगे कि आप हम सभी के जीवन का मूल उद्देश्य मोक्ष पाना है, अब सवाल उठता है कि मोक्ष मिलेगा कैसे? इस विषय को कल की प्रस्तुति में समझने की प्रयास करेंगे।

जय श्रीलक्ष्मी नारायण!
हरि ओऊम् तत्सत्

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