वैदिक ज्योतिष में चंद्र को मन का कारक माना गया है चंद्र एक राशि पर लगभग ढाई दिन विचरण करता है इसी प्रकार प्रत्येक ढाई दिन में मनुष्य जीवन मे कुछ न कुछ बदलाव आता रहता है।
चन्द्रमा की शुभता से एक और गजकेसरी योग, महालक्ष्मी योग बनता हैं, वंही दूसरी और केमुद्रम योग, विष योग और ग्रहण योग जैसे योग भी बनते हैं।
कभी आपने सुना होगा कि किसी एक इंसान के निर्णय लेने की शक्ति मजबूत रहती वंही दूसरी ओर एक इंसान कई दिनों तक कोई निर्णय ही नही ले पाता। ये सब चन्द्रमा की स्थिति पर निभर्र रहता है।
जब चंद्रमा के साथ राहू की युक्ति हो रही हो तो ऐसी अवस्था को चंद्र दोष माना जाता है। इसी अवस्था को चंद्र ग्रहण भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस अवस्था में चंद्रमा पीड़ित जाता है और चंद्रमा चूंकि मन का कारक है इसलिये मन में भी विकार पैदा होने लगते हैं।
इसके अलावा भी कुछ और अवस्थाएं हैं जिनमें चंद्र दोष होता है।
जब चंद्रमा पर राहू की दृष्टि पड़ रही हो तो यह भी चंद्र दोष कहलाता है या फिर चंद्रमा केतु के साथ युक्ति संबंध कर रहा हो तो उसे भी चंद्र दोष माना जाता है।
चंद्रमा यदि नीच राशि का याने वृश्चिक राशि का हो या फिर नीच ग्रह, अशुभ ग्रह या कहें पाप ग्रहों के साथ हो तो भी चंद्र दोष होता है।
जब राहू और केतु के बीच में चंद्रमा हो तो इसे भी चंद्र दोष कहते हैं। चंद्रमा पर किसी भी क्रूर ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो तो उससे भी चंद्र दोष होता है। जब सूर्य और चंद्रमा एक साथ हों यानि अमावस्या को भी चंद्र दोष कहा जाता है।
इसके अलावा चंद्रमा से द्वितीय और द्वादश स्थान पर सूर्य, राहू और केतु के अलावा कोई भी ग्रह न हो तो यह भी चंद्रमा को पीड़ित करता है।
शरीर का बायां अंग, बायीं आंख, स्त्रियों में मासिक धर्म, रक्त संचार इन पर चन्द्र का प्रभाव रहता है। मन, दया की भावना, आकांक्षाएं चन्द्रमा द्वारा संचालित होते हैं.जिनकी जन्म पत्रिका में चन्द्रमा मंदा या कमज़ोर होता है उनमें दया की भावना का अभाव होता हैं। ये दूसरों की उन्नति देखकर उदास होते हैं। मन में अहंकार की भावना रहती है। इनकी माता को एवं स्वयं को कष्ट उठाना पड़ता है। पैतृक सम्पत्ति को संभालकर नहीं रख पाता है। जिस स्त्री की कुंडली में चन्द्रमा कमज़ोर होता है उन्हें मासिक चक्र में परेशानी होती है।
जन्मकालिक ग्रहों से चंद्र का गोचर फल
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जन्मस्थ चंद्र के पक्षबल पर निर्भर करता है की यदि पक्षबल में बली हो तो शुभ अन्यथा क्षीण होने पर अशुभ फल देता है। जन्मस्थ सूर्य पर से या उससे सातवें स्थान से गोचर के चंद्रमा का शुभ प्रभाव जन्मस्थ चंद्र के शुभ होने पर निर्भर है। चंद्रमा स्वास्थ्य की हानि, धन की कमी, असफलता तथा आंख में कष्ट देता है। जन्मस्थ गुरु पर से या उससे सातवें स्थान से गोचर का चंद्रमा बली हो तो स्त्री सुख देता है। ऐशो आराम के साधन जुट जाते हैं, धन का लाभ होता है लेकिन जन्मकालीन चंद्रमा क्षीण हो तो इसके विपरीत अशुभ फल मिलता है। जन्मस्थ शनि पर से अथवा उससे सप्तम स्थान पर से जब गोचर का चंद्रमा गुजरता है तो धन मिलता है लेकिन निर्बल हो तो मनुष्य को व्यापार में घाटा होता है।
चंद्र अरिष्ट शांति के लिए विशेष उपाय
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1. जन्म कुंडली में चंद्र यदि स्वयं राशि (कर्क) या वृष राशि का हो तो भगवती गौरी का पूजन करना शुभ रहता है।स्वास्थ्य एवं त्रिविध तापो की अरिष्ट शांति के लिए श्री महामृत्युंजय का सवा लाख जप एवं दशांश हवन, और अमोघ शिव कवच का पाठ करना लाभदायक रहता है।
यदि चंद्र केतु के साथ अथवा चंद्र – शनि की युति हो तो श्री गणेश सहस्त्रनाम एवं गणेश पूजन करना चाहिए।
चंद्रमा यदि बुध युत या स्त्री राशि में हो तो श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ कल्याणप्रद रहता है।
विवाहादि कार्यो में चंद्र-राहु आदि ग्रहों को अशुभ प्रभाव हो तो श्री शिव पार्वती का पूजन एवं अभिषेक एवं पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए।
2. 16 सोमवार लगातार व्रत रखकर सायंकाल सफ़ेद वस्तुओं का दान एवं 5 छोटी कन्याओं को भोजन कराना चाहिए।
3. सोमवार एव पूर्णिमा को प्रातः काल स्नानादि से निवृत होकर चाँदी के बर्तन में कच्ची लस्सी (दूध, गंगा जल, शुद्ध जल) की धारा शिवलिंग पर ॐ नमः शिवाय बोलते हुए चढ़ाना चाहिए।
4. प्रत्येक सोमवार बबूल के पेड़ को दूध से सींचना चाहिए।
5. चन्द्रमा यदि संतान के लिए निर्बल या अरिष्ट कर रहा हो तो शिव जी की अराधना-अभिषेक करना शुभ होता है।
6. विवाहादि के लिए चंद्र बाधक हो तो 32 पूर्णमाशी के व्रत का अनुष्ठान करना सौभाग्य कारक होता है।
7. पूर्णिमा को चंद्रोदय के समय चाँदी या तांबे के बर्तन में शहद मिला हुआ पकवान यदि चंद्र को अर्पण किया जाए तो इससे चंद्र की तृप्ति होती है।इससे प्रसन्न होकर चंद्र देव सभी कष्टों से छुटकारा दिलाते है।
8. पूर्णमाशी को चांदी का कड़ा, चाँदी की चैन या सिक्का विधिपूर्वक धारण करना चाहिए।
9. स्त्रियों को असली मोतियों की माला विधिपूर्वक अभिमंत्रित करके पूर्णमाशी को गले में धारण करने से मानसिक शांति, स्वास्थ्य एवं दाम्पत्य जीवन के लिए शुभ होता है।
10. बारह वर्ष तक की आयु के बच्चे की स्वास्थ्य की रक्षा के लिए चाँदी के सिक्के पर चंद्र का बीज मंत्र”ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः” खुदवाकर, इसी मन्त्र से अभिमंत्रित करके गले में विधिपूर्वक पूजा करके धारण करना शुभ होगा।
11. चंद्र कृत दोषो की शांति के लिए द्वादश ज्योतिर्लिंग का पाठ प्रतिदिन करना एवं श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से भी शांति मिलती है।
12. सोमवार एवं पूर्णमाशी के दिन सफ़ेद चन्दन का तिलक लगना एवं सफ़ेद वस्त्र धारण करना शुभ होता है।
13. मानसिक एवं शारीरिक व्याधियों की शांति के लिए शरद पूर्णिमा की रात्रि को बादाम-मेवा युक्त खीर को रात में चाँद की रौशनी में रख कर दूसरे दिन भगवान् को भोग लगा कर तथा ब्राह्मणों को खिलाने के बाद स्वयं खाने से अनेक रोगों में शांति मिलती है।
14. श्रावण एवं माघ मास में सोमवार के व्रत करना, प्रतिदिन शिवलिंग पर कच्ची लस्सी एवं बेलपत्र पंचाक्षरी मन्त्र बोलकर चढ़ाना, श्री शिव पंचाक्षर स्त्रोत्र, शिव चालीस आदि का पाठ करना एवं घी का दीपक जलाना कल्याणकारक होता है।
15 . चंद्र की महादशा एव अंतर्दशा में यदि अनिष्टकारक योग हो तो मृत्यु तुल्य कष्ट का भय होता है।इस दोष की निवृत्ति के लिए महामृत्युंजय, शिवसहस्त्रनाम का जाप पाठ एवं चंद्र का दान करना चाहिए।
चंद्र में शनि की अंतर्दशा में मृत्युंजय जप एवं शनि का दान करना चाहिए।
16 . चंद्र में शुक्र अथवा सूर्य की अंतर दशा में क्रमशः रूद्र-जप तथा शिव पूजन व् श्वेत वस्त्र, क्षीर आदि का दान करना चाहिए।
17 . जन्म कुंडली में चंद्र यदि मातृ दोष कारक है तो हर अमावस विशेषकर सोमवती अमावस को पहले शिव परिवार का पूजन कच्ची लस्सी, बेल पत्र, अक्षत,धुप, दीप आदि मन्त्र सहित करने के बाद पीपल पर भी कच्ची लस्सी में सफ़ेद तिल डालकर चढ़ाना एवं घी का दीपक जलाना शुभकारक होता है।तदोपरांत ब्राह्मण को फल – दूध आदि का दान करें।
18 . शुक्ल पक्ष के सोमवार अथवा पूर्णमाशी से शुरू करके प्रत्येक सोमवार और पूर्णमाशी को मन्त्र जप करते हुए पंचगव्य, स्फटिक, मोती, सीप, शंख, बिल्व, कमल, सफ़ेद चन्दन, गौ दूध, गोबर, गौ मूत्र, सफ़ेद तिल, चावल, गंगाजल, एवं सफ़ेद पुष्प जल में डाल कर औषधीय स्नान करने से चंद्र जनित अनेक कष्टो से शांति मिलती है।
नॉट. औषधि स्नान के दिन साबुन,शैम्पू अन्य सुगन्धित तेल या प्रदार्थ से परहेज करें।
19 . क्षीरनी (खिरनी) की जड़ सोमवार को सफ़ेद डोरे में चंद्र मन्त्र से अभिमंत्रित करके बाजू में बाँधने से चंद्र दोष की शांति होती है।यह जड़ सोमवार की रोहिणी नक्षत्र में धारण की जाये तो विशेष प्रभावी होती है।
20 . प्रतिदिन सफ़ेद गौ को मीठी रोटियां और हरा चारा खिलाना शुभ होता है।
21 . छोटे बच्चे की कुंडली में चंद्र अशुभ फल दे रहा है तो उन्हें कैल्सियम का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए उत्तम रहता है।
22 . चंद्र अशुभ ग्रहों राहु-शनि आदि से आक्रांत होकर अशुभ् स्थानों छठे, आठवें, बारहवें स्थान पर हो, तो दूध, दही, खोया, पनीर आदि श्वेत वस्तुओं का व्यापार ना करें।
23 . चंद्र के स्वास्थ्य के दृष्टि से अशुभ् होने पर जातक/जातिका को चांदी के गिलास में या पानी में चांदी का टुकड़ा डाल कर पानी पीना चाहिए।
24 . यदि कुंडली में चंद्र केतु का अशुभ योग 6, 8, या 12 भाव में हो तो जातक/ जातिका को हरा वस्त्र, केले, साबुत मूंग, हरा पेठा आदि का दान करना चाहिए।
25 . चंद्र यदि व्यवसाय एवं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तो चंद्रग्रहण के समय आटा, चांवल, चीनी, गुड़, सूखा नारियल, सफ़ेद तिल एवं सतनाजा आदिका यथा सामर्थ दान तथा ग्रहणा काल में चंद्र के बीज मंत्र का यथा शक्ति जप करना लाभकारी होगा।
26 . अपने बड़े लोगो का विशेषकर माता-पिता,बुआ-बहन आदि की सेवा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना शुभ रहेगा
27 . मीट-मास,शराब आदि तामसी भोजन से परहेज करने से तथा ध्यान, जप, दान आदि से क्षीण चंद्र को बल मिलता है।
28. चंद्र यदि संतान सुख में बाधक है तो रात्रि कालीन दूध व् पानी में सोने की सिलाई गर्म करके बुझाकर पीना पति-पत्नी के लिए शुभकारक होता है।