WordPress database error: [Disk full (/tmp/#sql-temptable-19a1ac-c00-b3.MAI); waiting for someone to free some space... (errno: 28 "No space left on device")]
SELECT DISTINCT meta_value FROM wptw_usermeta WHERE meta_key = 'wptw_googlesitekit_site_verification_meta'

धर्मं

जीवन के मूल्यवान क्षणों का सद्व्यय 

यदि आप रात्रि में दस बजे सोकर प्रातः सात बजे उठते हैं तो एक बार जरा पाँच बजे भी उठकर देखिए। अर्थात् व्यर्थ की निद्रा एवं आलस्य से दो घंटे बचा लीजिए। चालीस वर्ष की आयु तक भी यदि आप सात बजे के स्थान पर पाँच बजे उठते रहें तो निश्चय जानिए दो घंटे के इस साधारण से अन्तर से आपकी आयु के दस वर्ष और जीने के लिए मिल जायेंगे।

नित्य प्रति हमारा कितना जीवन व्यर्थ के कार्यों, गपशप, निद्रा तथा आलस्य में अनजाने ही विनष्ट हो जाता है, हम कभी इसकी गिनती नहीं करते। आजकल आप जिससे कोई कार्य करने को कहें, वही कहेगा, ‘जी, अवकाश नहीं मिलता। काम का इतना आधिक्य है कि दम मारने की फुरसत नहीं है। प्रातः से साँय तक गधे की तरह जुते रहते हैं कि स्वाध्याय, भजन, कीर्तन, पूजन, सद्ग्रन्थावलोकन इत्यादि के लिए समय ही नहीं बचता।’

इन्हीं महोदय के जीवन के क्षणों का यदि लेखा-जोखा तैयार किया जाय तो उसमें कई घंटे आत्म-सुधार एवं व्यक्तित्व के विकास के हेतु निकल सकते हैं। आठ घंटे जीविका के साधन जुटाने तथा सात घंटे निद्रा-आराम इत्यादि के निकाल देने पर भी नौ घंटे शेष रहते हैं। इसमें से एक-दो घंटा मनोरंजन, व्यायाम, टहलने इत्यादि के लिए निकाल देने पर छः घंटे का समय ऐसा शेष रहता है जिसमें मनुष्य परिश्रम कर पर्याप्त आत्म-विकास कर सकता है, कहीं से कहीं पहुँच सकता है।

यदि हम सतर्कता पूर्वक यह ध्यान रक्खें कि हमारा जीवन व्यर्थ के कार्यों या आलस्य में नष्ट हो रहा है और हम उसका उचित सदुपयोग कर सकते हैं तो निश्चय जानिए हमें अनेक उपयोगी कार्यों के लिए खुला समय प्राप्त हो सकता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button