धेनुकासुर का उद्धार —
सभी दैत्यों के नामो की आध्यात्मिक विवेचना —
आखिर सभी दैत्यों ने पशु रूप में ही आकर क्यों भगवान श्री कृष्ण पर आक्रमण किया ? —
क्या पूतना श्री हरि की माया की प्रतीक थी ? क्या सभी मानव इन असुरों के प्रभाव से ग्रसित हो रहे है ?
श्री गर्ग संहिता –श्री वृन्दाबन खण्ड -अध्याय 11
धेनुकासुर का उद्धार — एक दिन श्री कृष्ण और बलराम अपने गोप वृन्दो के साथ गायो को चराते हुए नूतन तालवन के पास चले गए -वहां कंस का मित्र #धेनुकासुर रहता था – श्री बलराम जी उस वन के अंदर चले गए और पेंडो से फलो को तोड़ने लगे – इस शोर से जागकर क्रोधित होकर अति बलशाली धेनुकासुर ने बलराम पर आक्रमण कर दिया , उनमे भयँकर युद्ध छिड़ गया तब श्री कृष्ण और गोप बालक भी उनकी सहायता करने वन मे पँहुच गए–
श्री कृष्ण और बलराम दोनो के प्रयासों से #गदहे के रूप में रहने वाला धेनुकासुर मारा गया — आश्चर्य , देह से अलग होते ही वह दैत्य श्याम सुंदर विग्रह धारण करके पुष्पमाला , पीताम्बर और वनमाला से विभूषित होकर , एक विशाल रथ पर सवार होकर ,अनेक पार्षदों द्वारा सेवित होकर , भगवान श्री कृष्ण और श्री बलराम जी की परिक्रमा और स्तुति करके , दिशामण्डल को देदीप्यमान करता हुआ , प्रभु के गोलोकधाम को चला गया —
राजा बहुलाश्व के पूछने पर देवर्षि नारद जी ने बताया –कि धेनुकासुर , पहले विरोचनपुत्र राजा #बलि का बलवान पुत्र ” #साहसिक ” था — एक बार हजारो स्त्रियों के साथ गन्धमादन पर्वत पर विहार कर रहा था , इस शोर से पास ही किसी गुफा में तपस्यारत दुर्वासा मुनि का ध्यान भंग हो गया और उन्होंने क्रोधित होकर श्राप दिया –
-” दुर्बुद्धे असुर ! तू #गदहे के समान #भोगासक्त है , इसलिए गदहा हो जा , द्वापर में दिव्य माधुर्य मण्डल के अंतर्गत पवित्र तालवन में श्री बलदेव जी के हांथो तेरी मुक्ति होगी ”
* *** अपनी बात ***
भगवान श्री कृष्ण की दानव उद्धार लीला की आध्यात्मिक व्याख्या —
१–पूतना — प्रभु के अवतरित होते ही पहला आक्रमण ” पूतना ” द्वारा हुआ — सभी मानव
जन्म लेते ही इसके शिकार हो जाते है — यह प्रभु की #महामाया है जो गर्भ में प्रभु के दर्शन करने वाले जीव को संसार के विष का पान कराकर उसे अपने रंग में रंग लेती है , वह प्रभु के अमृतमय सानिध्य को भूल जाता है
” भूमि परत भा ढाबर पानी । जिमि जीवहि माया लपटानी ।।
( राम चरि मानस किश्किनधा कांड 13 / 14 ) जैसे बरसात में जल भूमि पर गिरते ही गन्दा हो जाता है , वैसे ही जीव के पृथ्वी पर आते ही वह माया से ग्रस्त हो जाता है – पूतना ने #मायापति को भी #जकड़ने की कोशिश की नतीजा जीवन से हाथ धो बैठी ।
२– शकटासुर — अदृश्य रूप में रह कर –सामने न आकर — पीछे से या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से नुकसान पँहुचने वाले ही शकटासुर है – इनसे हमेशा सावधान रहने की आवश्यकता है ।
३–वत्सासुर — यह #धोखा देने वालो का प्रतीक है – कपट वेश रख कर अत्यंत आत्मीय बन कर अपनो में शामिल होकर ( यहां बछड़ो मे शामिल होकर) हानि पंहुचाने की इच्छा रखने वाला ही वत्सासुर है जिससे ग्वाल बालो की प्रभु ने रक्षा की ।
४– तृणावर्त असुर — हमारा #अभिमान है — संसार मे प्रभु के सामने , तिनके के समान अस्तित्व होते हुए भी , तीब्र बहती वायु के साथ मानव धमण्ड में अपने को असीम ऊंचाइयों वाला महान समझने लगता है – प्रभु ने तृणावर्त का भी घमण्ड चूर चूर किया ।
५ — बकासुर — सच्चाई न मानकर आत्म प्रसंशा में बक बक करना ,तथा अनावश्यक तर्क वितर्क में लगे रहकर स्वयम तथा दूसरों को भी साधन पथ से विचलित करने वाले बकासुर ही तो है – इनकी चाल में से सावधान रहना बहुत आवश्यक होता है ।
६– अघासुर — यह #लोभ की प्रवत्ति है -असीम लालच में , अजगर की तरह मुख फैलाये , शातिर धोखे बाज , धन की प्राप्ति के लिए कुछ भी करने को तैयार #नटवरलाल सरीखे व्यक्ति ही तो अघासुर है इनके चक्कर में फंसना अत्यंत आत्मघातक हो सकता है ।
७– धेनुकासुर — यह #अनियंत्रित #काम से ग्रस्त व्यक्ति का प्रतीक है – दैत्यराज दानवीर राजा बलि के पुत्र “साहसिक “को अत्यंत बलशाली होते हुए भी अनियंत्रित काम विहार के कारण गदहे का रूप रखकर असुर बनना पड़ा ।
एक प्रश्न और है — आखिर यह सभी दैत्य , श्री कृष्ण को हानि पहुंचाने के लिए पशुओं के रूप में क्यो आये ?
उत्तर बहुत ही स्पष्ट है — यह सभी मोह ,लोभ , अभिमान ,कामवासना आदि पशुवत वृत्तियां है , इस लिए प्रभु के सामने इन्हें अपने असली रूप पशुओं के रूप में ही आना पड़ा –