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मध्यप्रदेश

हिमाचल प्रदेश में CM सुक्खू ने आर्थिक बदहाली के लिए बीजेपी को ठहराया जिम्मेदार, केंद्र पर साधा निशाना

हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार और सचिवालय कर्मचारी महासंघ के बीच इन दोनों ठनी हुई है. सचिवालय सेवाएं कर्मचारी महासंघ ने राज्य सरकार को दो टूक स्पष्ट किया है कि जब तक सरकार लंबित डीए और एरियर जारी नहीं कर देती, तब तक वह अपना विरोध जारी रखेंगे. इस बीच हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ और हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी सेवाएं संघ के साथ राज्य सचिवालय में बैठक की. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कर्मचारियों की मांगों को सुनकर जल्द पूरा करने का आश्वासन दिया.

केंद्र सरकार के पास एनपीएस के 9200 करोड़ रुपये
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि केंद्र सरकार के पास एनपीएस के 9 हजार 200 करोड़ रुपये फंसे हुए हैं. केंद्र सरकार की ओर से आपदा राहत के 10 हजार करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं, लेकिन यह राशि भी अब तक जारी नहीं की गई है. राज्य सरकार को पूर्व बीजेपी सरकार से कर्मचारियों की 10 हजार करोड़ रुपये की देनदारियां विरासत में मिली हैं. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि प्रदेश में पुरानी पेंशन योजना (Old Pension Scheme) बहाल करने के बाद केंद्र सरकार ने राज्य सरकार पर कई तरह की बंदिशें लगा दी हैं. राज्य सरकार की लोन लिमिट 6 हजार 600 करोड़ रुपये निर्धारित कर दी गई है. अगले वित्त वर्ष के लिए 3 हजार 500 करोड़ रुपये का राजस्व घाटा अनुदान प्राप्त होगा, जबकि यह राशि पिछली बीजेपी सरकार को प्राप्त राशि से 7 हजार करोड़ रुपये कम है.

क्या हैं हिमाचल के मौजूदा वित्तीय हालात?
बता दें कि हिमाचल प्रदेश में सैलरी और पेंशन पर 42 फीसदी बजट खर्च हो रहा है. राज्य में कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए सिर्फ 28 फीसदी ही बजट बच जाता है. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने बताया कि इस वित्त वर्ष में हर 100 रुपये में से वेतन पर 25 रुपये, पेंशन पर 17 रुपये, ब्याज पर 11 रुपये, कर्ज अदायगी पर नौ रुपये, स्वायत्त संस्थानों की ग्रांट पर 10 रुपये और बचे हुए 28 रुपये पूंजीगत व्यय के साथ अन्य गतिविधियों पर खर्च किए जा रहे हैं. हिमाचल प्रदेश को मिलने वाला राजस्व घाटा अनुदान भी कम हुआ है. वित्त वर्ष 2021-22 में अनुदान के रूप में राज्य सरकार को 10 हजार करोड़ रुपये मिलते थे, जबकि वित्त वर्ष 2025-26 में यह अनुदान घटकर तीन हजार करोड़ रुपये रह जाएगा.

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