धर्मं

भगवान नाम की महिमा

तुलसी मेरे राम को, रीझ भजो या खीज
भौम पड़ा जामे सभी, उल्टा सीधा बीज..

एक अनपढ़(गँवार) आदमी एक महात्मा जी के पास जाकर बोला ‘‘महाराज ! हमको कोई सीधा-साधा नाम बता दो, हमें भगवान का नाम लेना है।
महात्मा जी ने कहा- तुम ‘अघमोचन-अघमोचन’(“अघ” माने पाप, “मोचन” माने छुड़ाने वाला)नाम लिया करो।

अब वह बेचारा गाँव का गँवार आदमी “अघमोचन-अघमोचन” करता हुआ चला तो पर गाँव जाते-जाते “अ” भूल गया। वह ‘घमोचन-घमोचन” बोलने लगा।

एक दिन वह हल जोत रहा था और “घमोचन-घमोचन” कर रहा था, उधर वैकुंठ लोक में भगवान भोजन करने बैठे ही थे कि घमोचन नाम का उच्चारण सुन उनको हँसी आ गयी। लक्ष्मीजी ने पूछा-‘प्रभू! आप क्यों हँस रहे हो ?

भगवान बोले- आज हमारा भक्त एक ऐसा नाम ले रहा है कि वैसा नाम तो किसी शास्त्र में है ही नहीं। उसी को सुनकर मुझे हँसी आ गयी है।

‘‘लक्ष्मी जी बोली- प्रभू! तब तो हम उसको देखेंगे और सुनेंगेे कि वह कैसा भक्त है और कौन-सा नाम ले रहा है।’’

लक्ष्मी-नारायण दोनों उसी खेत के पास पहुँच गए जहाँ वह हल जोतते हुए “घमोचन-घमोचन” का जप कर रहा था।

पास में एक गड्ढा था भगवान स्वयं तो वहाँ छिप गये और लक्ष्मीजी भक्त के पास जाकर पूछने लगीं- ‘‘अरे, तू यह क्या घमोचन-घमोचन बोले जा रहा है ?’’

उन्होंने एक बार, दो बार, तीन बार पूछा परंतु उसने कुछ उत्तर ही नही दिया।

उसने सोचा कि इसको बताने में हमारा नाम-जप छूट जायेगा। अतः वह “घमोचन-घमोचन” करते रहा, बोला ही नहीं।

जब बार-बार लक्ष्मी जी पूछती रहीं तो अंत में उसको आया गुस्सा, गाँव का आदमी तो था ही, बोला : ‘‘जा ! तेरे पति का नाम ले रहा हूँ क्या कराेगी।”

अब तो लक्ष्मी जी डर गयी कि यह तो हमको पहचान गया। फिर बोलीं- ‘‘अरे, तू मेरे पति को जानता है क्या? कहाँ है मेरा पति ?’’

एक बार, दो बार, तीन बार पूछने पर वह फिर झुँझलाकर बोला ‘‘वहाँ गड्ढे में है, जाना है तुझे भी उस गड्ढे मे..???

लक्ष्मी जी समझ गयीं कि इसने हमको पक्का पहचान लिया बोली प्रभू! बाहर आ जाओ अब छिपने से कोई फायदा नही है…

…और तब भगवान उसी गड्ढे से बाहर निकल कर वहाँ आ गये और बोले ‘‘लक्ष्मी ! देख लिया, ‘मेरे नाम की महिमा’ ! यह अघमोचन और घमोचन का भेद भले ही न समझता हो लेकिन यह जप तो हमारा ही कर रहा था। हम तो समझते हैं…

यह घमोचन नाम से हमको ही पुकार रहा था। जिसके कारण मुझे इसको दर्शन देना पड़ा।

भगवान ने भक्त को दर्शन देकर कृतार्थ किया कोई भी भक्त शुद्ध-अशुद्ध, टूटे- फूटे शब्दों से अथवा गुस्से में भी कैसे भी भगवान का नाम लेता है तब भी भगवान का ह्रदय उससे मिलने को लालायित हो उठता है और खुद को भक्त से मिलने को रोक नहीं पाता हूं ।

इसी प्रकार प्रभु नाम सुमिरन कैसे भी किया जाये उसके सुमिरन का फल अवश्य ही मिलता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button