समुद्र शास्त्र में कहा गया है कि जो कोई भी हजारों जन्मों तक तपस्या करता है, उसे वृंदावन में कदम रखने का अवसर मिलता है। *श्रील रूप गोस्वामी ने मथुरा महात्म्य में उल्लेख किया है कि वृंदावन में एक कदम रखने से हजारों जन्मों में संचित पाप एक क्षड़ में नष्ट हो जाते हैं

हर सुबह वृन्दावन का नज़ारा, चिड़ियों का चहकना, मंदिरों की घंटी की आवाज़, संत पुरुषों का सत्संग जैसे भक्ति रस घुल रहा हो; हर आत्मा उस में मगन हो, यह है खूबसूरती वृन्दावन धाम की। यहाँ हर व्यक्ति राधा कृष्ण जी की कृपा पात्र है, यहाँ पढाई का पहला अक्षर भगवान् श्री हरी जी के नाम से है। यमुना जी का कल-कल करता पानी, फल / फूलों से लदे वृक्ष, भंवरों की गुंजन, हरी नाम की रास लीलाओं के गान; हर आत्मा को श्री राधा कृष्णा जी से जोड़ देता है।

कोई गिरिराज की परिक्रमा कर रहा है तो कोई वृन्दावन की

कोई जा रहा है निधिवन तो कोई वंशीवट
कोई इस्कॉन, कोई मदन टेर तो कोई मान सरोवर, कोई भागवत वाच रहा है तो कोई गीता; कोई भक्तों को भगवान की कथा सुना रहा है तो कोई भगवान् के मीठे भजन गा रहा है
ऐसा लगता है की सब तन मन धन से भगवान के श्री चरणों में अर्पित हो गए हों। ऐसा नज़ारा है हमारे वृन्दावन धाम का।
कोई सुबह-सुबह मंदिर की सीढ़ियाँ धो रहा है तो कोई प्रसाद बाँट रहा है, कोई कीर्तन कर रहा है तो कोई दर्शन खुलने की प्रतिक्षा कर रहा है। कोई दर्शन करके उस में मगन हो रहा है तो कोई पद्यावाली लिखने में व्यस्त हो रहा है, कहीं मंदिर में फूलों का श्रृंगार बन रहा है तो कहीं भोग बन रहा है। ऐसा लगता है जैसे आठों पहर भगवान् से शुरू हो कर भगवान् पर ही समाप्त हो जाते हैं।
समय कब समाप्त हो जाता है ये किसी को पता ही नहीं चलता है। ना किसी को अपनी अवस्था का ध्यान है न ही किसी को अहंकार है न ही कोई झगडा लड़ाई है सब मिल झूलकर निःस्वार्थ प्रेम जगा रहे हैं, अपने और दूसरों के दिल में। प्रातःकाल के यह हैं सुन्दर दर्शन इस वृन्दावन धाम के। यहाँ किस रूप में भगवान् मिल जाएँ कुछ पता नहीं। ऐसी अद्भुत धरती को हम शत-शत नमन करते हैं।
इस धाम में आनेवाले हर किसी के मन में एक सी ही छवि है श्री श्री राधा श्यामसुंदर की:-
घुंगराले केश, कमल नयन, श्याम वर्ण, मोहिनी चितवन, मीठी मुस्कान, गले में वैजयन्ती माला, जिनके शीश पर विराजे मोर मुकुट, तन लहराए पीत पीताम्बर, चरणों में नुपुर, हाथों में बांसुरी लिए यह नटखट श्याम जिसे हर गोप-गोपी प्रेम से कान्हा बुलाये- वह सब का चित चुरा लेते हैं।
भोली भाली, चन्द्र वदन, चंचल नयन, सुन्दर मोहिनी स्वरुप, गौर वरन, मधुर मुस्कान, मन मोहिनी, रसिक वन्दिनी, शीश चंद्रिका धारिणी, कनक समान शोभायमान, भूषण बिना विभूषित वृन्दावन धाम की अधिष्टात्री देवी हमारी श्री राधा रानीजी।
यहाँ नित्य प्रातः से लेकर रात्रि तक हर कोई केवल श्री राधाकृष्ण जी की ही सेवा में रत है।

आठों पहर आठों याम, श्रीयुगल सेवा एक ही काम!
राधे-राधे से गूँजे गलियाँ, ऐसो है श्रीवृंदावन धाम..!!

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