हिमाचल प्रदेश का जिला शिमला अपनी खूबसूरत वादियों के साथ-साथ धार्मिक पर्यटन के लिए भी मशहूर है. शिमला में कई ऐसे धार्मिक स्थल है, जिनकी मान्यता देश-विदेश में है. इनमें कालीबाड़ी मंदिर, जाखू मंदिर, तारा देवी मंदिर, संकटमोचन मंदिर, हाटू माता मंदिर, हाटेशवरी माता मंदिर आदि शामिल है. इन धार्मिक स्थलों पर हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. धार्मिक स्थलों की कड़ी में जिला शिमला और सिरमौर जिले के बॉर्डर पर एक ऐसा धार्मिक स्थल है, जिसके जिक्र के दौरान मुगल काल का भी जिक्र आता है. शिरगुल देवता जिला शिमला, सिरमौर और सोलन सहित उत्तराखंड राज्य के कई लोगों की श्रद्धा का प्रतीक है.

कैसे मुगल काल से जुड़ा संबंध
चूड़धार की ऊंची चोटी पर विराजमान शिरगुल देवता लाखों लोगों की श्रद्धा का प्रतीक है. पुराने समय में लोग सिरमौर, शिमला आदि क्षेत्रों से राशन और अन्य सामग्रियां खरीदने के लिए दिल्ली जाया करते थे. स्थानीय भाषा में इस राशन और सामान को हाट कहा जाता था. ऐसे में इन क्षेत्र के लोगों का नाम हाटी पढ़ने लगा. शिरगुल देवता को पहला हाटी भी कहा जाता है. मुगल काल के दौरान शिरगुल देवता स्थानीय लोगों के साथ हाट लेने के लिए दिल्ली गए थे. इस दौरान एक व्यापारी के साथ हुई बहस के कारण सैनिकों ने उन्हें कोठरी में बंद कर दिया और कोठरी के ताले में चमड़ा लगा दिया.

चमड़े से कम होती हैं देव शक्तियां
बता दें कि देव मान्यताओं के अनुसार चमड़े से देवी देवताओं की शक्तियां कम पड़ जाती है. ऐसे में शिरगुल देवता की शक्तियों को कम करने के लिए उनकी कोठरी के ताले में चमड़ा लगाया गया, जिससे उनकी शक्तियां कम हो गई. उनकी खोज में जब उनके मित्र गूगा महाराज दिल्ली पहुंचे, तो एक झाड़ू लगाने वाली की मदद से उन्होंने कोठरी को ढूंढ निकाला. इसके बाद उन्होंने अपने दांत से चमड़े को काट कर शिरगुल देवता को आजाद करवाया. इसी घटना के कारण चूड़धार और शिरगुल देवता का कनेक्शन मुगल काल से जोड़ा जाता है.

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