भरतजी ने कैसे घोड़े तैयार करवाये हैं, अब उनकी विशेषता बतलाते हैं –
सुभग सकल सुठि चंचल करनी ।
अय इव जरत धरत पग धरनी ॥५॥
नाना जाति न जाहिं बखाने ।
निदरि पवनु जनु चहत उड़ाने ॥६॥
⛳ शब्दार्थ – अय (अयस्) = लोहा। छयल (छैल) = बने-ठने, रंगीले।
अर्थ – सब घोड़े बड़े ही सुंदर और चंचल करनी (चाल) के हैं। वे धरती पर ऐसे पैर रखते हैं जैसे जलते हुए लोहे पर रखते हों। अनेकों जाति के घोड़े हैं, जिनका वर्णन नहीं हो सकता। (ऐसी तेज चाल के हैं) मानो हवा का निरादर करके उड़ना चाहते हैं।
👉 ‘सुभग सकल सुठि…’ – ‘सुभग’ शब्द ‘सुन्दरता’ और सुन्दर ऐश्वर्य दोनों अर्थो का यहाँ बोधक है। घोड़े सुन्दर हैं और ऐश्वर्ययुक्त हैं। अर्थात् अनेक आभूषणों को धारण किये हुए हैं। ‘सकल’ दोनों ओर लगता है। सभी सुन्दर हैं और सभी की करनी चंचल है। ‘सुठि’ कहकर दर्शाया है कि और घोड़े भी चंचल होते हैं पर, ये ‘अत्यन्त चंचल’ हैं।
👉 ‘सुठि चंचल करनी’ अर्थात् चलने में, कूदने में, नाचने में और दौड़ने में बहुत ही तेज हैं। चंचल करनी का आगे दृष्टान्त देते हैं – ‘अय इव…’।
👉 ‘नाना जाति न जाहिं बखाने ‘ – संसार में तीन स्थल हैं-जल, थल, और नभ तीनों का हाल कहते हैं। थल में जलते हुए लोहे (पर पैर धरने) के समान पैर धरते हैं ( ‘अय इव जरत।’), पवन का निरादर कर आकाश में उड़ना चाहते हैं और जल में थल की तरह चलते हैं
‘नाना जाति न जाहिं बखाने’ अर्थात् अनेकों जाति के हैं, बखाने नहीं जा सकते, यह कहकर भी कुछ जाति का संकेत भी कर दिया है। ‘अय इव जरत धरत पग धरनी’ ये ‘जमावटि’ हैं। ‘निदरि पवनु जनु चहत उड़ाने’ ये ‘कुदैती’ हैं। ‘निदरि पवनु’ से दर्शाया है कि ये पवनवेगी घोड़े हैं। इसी प्रकार यहाँ जलचर, थलचर, नभचर तीन जाति के भी दरसा दिये, यथा – ‘अय इव जरत धरत पग धरनी’ से थलचर; ‘निदरि पवनु जनु चहत उड़ाने’ से नभचर और ‘जे जल चलहिं’ (अगले दोहे की सातवीं चौपाई में) से जलचारी। ‘जे जल चलहिं’ ये दरियायी घोड़े हैं।
👉 ‘जनु चहत उड़ाने’ – भाव यह है कि उड़ना चाहते हैं, पर उड़ने नहीं पाते, क्योंकि सेवक उन्हें थामें हुए हैं।
तिन्ह सब छयल भए असवारा ।
भरत सरिस बय राजकुमारा ॥७॥
सब सुंदर सब भूषनधारी ।
कर सर चाप तून कटि भारी ॥८॥
अर्थ – उन सब घोड़ों पर भरतजी के समान अवस्था वाले सब छैल-छबीले राजकुमार सवार हुए। वे सभी सुंदर हैं और सब आभूषण धारण किए हुए हैं। उनके हाथों में बाण और धनुष हैं तथा कमर में भारी तरकस बँधे हैं।
👉 ‘तिन्ह सब छयल भए असवारा’ – ‘सब छयल’ अर्थात् छैलों को छोड़ अन्य अवस्थावाले इन पर सवार नहीं हुए।
👉 ‘भरत सरिस बय’ का भाव यह है कि जब भरतजी घोड़े पर सवार हुए तब उन्होंने अपने समान अवस्थावाले राजकुमारों को अपने साथ लिया। यह राजाओं की चाल है। वे अपने रूप और अवस्था के समान पुरुषों को खोजकर संग में रखते हैं। ‘छयल’ से सभी की किशोर अवस्था सूचित की है। ‘भरत सरिस’ से यह दर्शाया है कि सबके आगे भरतजी की सवारी निकली; क्योंकि राजा की आज्ञा है कि शीघ्र चलो। अतः भरतजी ने सोचा कि हमारे आगे चलने से सब शीघ्रता करेंगे। यहाँ सब छैले हैं, क्योंकि भरतजी के साथवालों का वर्णन है। अपनी-अपनी अवस्था इत्यादिवाले एक साथ रहते हैं. तभी शोभा होती है।
👉 ‘तून कटि भारी’ – भारी तरकश है अर्थात् उसमें बहुत बाण भरे हुए हैं। बहुत बाणों से भरा भारी तरकश लेने का तात्पर्य यह है कि सब सुन चुके हैं कि जनकपुर में तीनों लोकों के वीरों का मान भंग हुआ है, न जाने विवाह के समय कौन वीर कहाँ से युद्ध के लिये आ जाय, इसीलिये सब साधन साथ हैं। पुनः, इनको छरे, छबीले और छैला कह आये हैं, इसमें संदेह हो सकता है कि. ये सब बड़े कोमल और सुकुमार होंगे, अतः ‘कर सर चाप तून कटि भारी’ कहकर दर्शाया है कि ये वीर हैं। राजा ने तो इतना ही कहा था – ‘हय गय स्यंदन साजहु जाई ।….’ तथापि यह सब भरतजी की सावधानता है।
।। दोहा ।।
छरे छबीले छयल सब, सूर सुजान नबीन ।
जुग पदचर असवार प्रति जे असिकला प्रबीन ॥२९८॥
⛳ शब्दार्थ – छरे = छटे हुए, चुने हुए। छबीले = छबि व शोभायुक्त, बाँके, कान्तिमान्।
अर्थ – सभी चुने हुए छबीले छैल, शूरवीर, चतुर और नवयुवक हैं। प्रत्येक सवार के साथ दो पैदल सिपाही हैं, जो तलवार चलाने की कला में बड़े निपुण हैं।
👉 ‘छरे छबीले छयल सब सूर..’ – जो ऊपर ‘तिन्ह सब छयल भए असवारा’ कहा है, वे ही ‘छरे छबीले’ हैं। पूर्व के वर्णन को यहाँ स्पष्ट करते हैं :–
(१) भरत सरिस वय है। कौन वय है ? – नवीन ।
(२) राजकुमार हैं। इसीलिये ‘छरे’ कहा। अर्थात् छाँटकर सब राजकुमारों को ही संग में लिया है, दूसरी जाति को नहीं।
(३) सुन्दर हैं, इसीलिये ‘छबीले’ हैं।
(४) भूषणधारी हैं, क्योंकि सब ‘छैले’ हैं।
(५) ‘कर सर चाप’ है, क्योंकि सब ‘शूरवीर’ हैं।
(६) कटि में भारी तूणीर है, क्योंकि सब बाणों के प्रयोग में सुजान हैं।
यहाँ छ: विशेषण दिये गये, जो गुण ऊपर चौपाइयों में कहे, वे सब इस दोहे में एकत्र किये गये। यथा – पूर्व कहा कि ‘भरत सरिस बय राजकुमारा’ उसकी जोड़ में यहाँ ‘नवीन’; पूर्व ‘राजकुमार’ उसकी जोड़ में यहाँ ‘छरे’; पूर्व ‘सब सुंदर’ यहाँ ‘छबीले’; पूर्व ‘भूषन धारी’ और ‘छयल भए असवारा’ कहा और यहाँ ‘छयल’; पूर्व ‘कर सर चाप’ यहाँ ‘सूर सुजान’। ‘सूर सुजान’ से दर्शाया है कि बाण चलाने में सब सुजान हैं, ऐसा नहीं कि अस्त्र का मन्त्र नहीं जानते हों।
👉 ‘जुग पदचर असवार प्रति’ – दो-दो पैदल साथ होने का भाव यह है कि एक तो घोड़े भारी हैं, जबर हैं, एक पैदल के सँभाले नहीं सँभले रह सकते, दूसरे जब सवार घोड़े से उतरे तब भी दो सेवक घोड़ा सँभालने के लिये चाहिये क्योंकि ये अत्यन्त चंचल हैं अथवा, एक घोड़े को थामे सँभालेगा और एक मालिक की सेवा में रहेगा।
