कलयुग केवल नाम अधारा,,,
जिस समय श्रीराम जी को समुद्र देवता ने बतलाया कि आपकी सेना में नल और नील ऐसे हैं, जिनको पुल के निर्माण में पूर्ण दक्षता प्राप्त है और वे आपकी सेना की सहायता से समुद्र पर सेतु बनाने का कार्य करने में आपकी कृपा से अवश्य ही सफलता प्राप्त करेंगे।

तब श्रीराम ने नल, नील को बुलाकर सेतु बंधन का कार्य सौंपा। नल, नील ने इसे अपना सौभाग्य समझा और वे इस कार्य में अविलम्ब जुट गए। वानर, भालू, बजरंगी वीर हनुमान को पत्थर ला-ला कर देते रहे और वह उन पर राम का नाम लिख कर उन पत्थरों को नल तथा नील को देते गए। नल, नील उन्हें समुद्र जल पर रखते रहे।

यह देख कर सब दंग रह गए कि वे पत्थर पानी में सहज ही तैरने लगे। किन्तु जब वानर भालुओं ने भक्ति भाव से देखा तो उनको कोई आश्चर्य न हुआ क्योंकि उन्हें राम-नाम पर और अपने श्रीराम प्रभु पर पूरा भरोसा जो था। परिणाम अविलंब गति से सेतुबंध का कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न किया जाने लगा।

श्रीराम को जब सेतु बंधन के कार्य की प्रगति बतलाई गई और बतलाया गया कि वीर हनुमान जिन पत्थरों पर आपका नाम लिख कर देते जाते हैं। नल, नील उन पत्थरों को पानी पर रखते हैं तो वे पत्थर सहज रूप से तैरने लगते हैं। इस बात पर श्रीराम को एकाएक भरोसा न हुआ अपितु उन्हें आश्चर्य ही हुआ किन्तु उन्होंने यह बात किसी पर भी प्रकट न होने दी।

दिन बीता, रात हुई, किन्तु श्रीराम को नींद न आई। वह करवट बदलते रहे। जब उन्हें नींद न आई तो वह उठे, चारों तरफ देखा, निरीक्षण-सा किया। धीरे से उठे और पहरेदारों की नजरों से बचते-बचाते, छिपते-छिपाते समुद्र के किनारे पहुंच गए। चुपचाप से उन्होंने एक पत्थर लिया और पानी में डाला। वह तुरंत पानी में डूब गया। यह देख कर श्रीराम हक्के-बक्के रह गए।

फिर उन्होंने एक पत्थर उठाया, उस पर अपना नाम ‘राम’ लिखा और पानी में डाला तो वह तैरने लगा। यह देख कर श्रीराम के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।

श्रीराम प्रभु की यह सब गतिविधि हनुमान जी शुरू से ही चुपके-चुपके देख रहे थे। जब उन्होंने श्रीराम को आश्चर्य में देखा तो वह अपने प्रभु के सामने आए। श्रीराम उन्हें देख कर सकपका से गए। तब हनुमान जी मंद-मंद मुस्कराए और फिर बोले, ‘‘प्रभु, शक्ति आप में इतनी नहीं है जितनी आपके नाम में है। यह तो अभी आपने स्वयं भी करके परख और देख ही लिया। हे राम जी, आपसे बड़ा आपका नाम है।’’

फिर आगे भी हनुमान जी बोले, ‘‘प्रभु जिसे आप छोड़ दें वह तो डूबेगा ही। हां, जिसे आपके नाम तक का भी सहारा मिल जाएगा, वह तो इस भव सागर से तैर कर पार हो ही जाएगा।’’

तब श्री राम बोले, ‘‘हां तुम कहते तो ठीक हो। भविष्य में कलियुग में तो इस नाम का प्रभाव अत्यधिक ही होगा। कलियुग में केवल नाम ही ऐसा आधार होगा जिसको लेकर भक्तजन संसार के भव सागर से तर जाएंगे।’’

यह सुना तो हनुमान जी ने हां में मस्तक नवाया, फिर श्रीराम अपने सेवक हनुमान के संग लौटकर सुख-निद्रा का आनंद लेने लगे।

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