भगवान श्री कृष्ण का मंगलमय  #चरित्र अम्रत रस से तैयार की हुई  #परममधुर  #खांड़ ( मिठाई ) है — प्रभु का बाल चरित्र वात्सल्य और प्रेम से सराबोर भक्तो के मन को मोह लेने वाला है — अत्यंत सुंदर बालोचित क्रीड़ा में तत्पर बाल मुकुंद का दर्शन करके गोप और गोपियाँ बहुत सुख  पाती थी –वे सुखस्वरूपा गोपांगनाये  अपना घर छोड़कर  नन्दराज के गोष्ठ में आ जाती और वहां आकर प्रभु की बाल लीला देखकर परमानन्द महसूस करती थी –यशोदा और रोहिणी अपने पुत्रों की कल्याण कामना से  प्रतिदिन वस्त्र , रत्न और नूतन अन्न का दान करती थी ।

श्री हरि अपनी बाल लीला से गोप गोपियों को आनन्द प्रदान करते हुए  सखाओ के साथ घरो में जा जा कर  माखन  की  चोरी करने लगे –गोपियाँ भले ही इसकी शिकायत  करने यशोदा के पास आती थी परंतु मन ही मन इस माधुर्य मयी लीला का आनन्द लेने के लिए  कन्हैया के अपने घर आने की  प्रतीक्षा करती रहती थी और  नटखट कृष्ण भी उन परम भाग्यशाली गोपियों को अपनी लीला से वात्सल्य मय  #ब्रम्हानन्द का सुख प्रदान करते थे —
माखन चुराने की लीला के साथ ही नवकंज लोचन , मनोहर श्याम रूप धारी श्री कृष्ण , बालचंद्र की भांति बढ़ने लगे -और फिर सभी के चित्त चुराते हुए वे बृज में अदभुत शोभा  का विस्तार करने लगे –

9 नन्द नाम के गोप अत्यंत चंचल श्री नन्द नन्दन को पकड़ कर अपने घर ले जाते और वहां बिठाकर उनकी रूप माधुरी का आस्वादन करते करते मोहित हो जाते थे – श्री नारद जी ने बताया कि गय , विमल ,श्रीश ,श्रीधर ,आदि 9 नन्द नन्दराज के गोकुल में उत्पन्न हुए थे , इसी प्रकार 9 उपनन्द और 6 वृषभानु ने  भी बृज  में जन्म लिया था –प्रभु श्री कृष्ण की इच्छा से ही यह सब  #गोलोक से  #पृथ्वी पर उतरे थे —

एक बार यमुना जी के तट पर श्रीकृष्ण ने मिट्टी का आस्वादन किया – यह देखकर बालको ने श्री यशोदा जी से श्री कृष्ण की शिकायत की  – नटखट कन्हैया ने मिट्टी ख़ाने से   मना किया  तब माँ यशोदा जी ने प्रभु के  #मुख को खोल कर  देखा -यशोदा जी को मुख के भीतर तीनो गुणों से रचित और सब ओर फैला हुआ  #ब्रम्हाण्ड दिखाई दिया –सातों द्वीप ,सातो  समुद्र , सारा विश्व , पर्वत , ब्रम्हलोक पर्यंत सभी लोक , समस्त बृज मण्डल सहित अपने  आप के शरीर को भी यशोदा ने अपने पुत्र के मुख में देखा –यह देखते ही उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली और सोचने लगी –” यह मेरा बालक तो साक्षात श्री नारायण है “” –इस तरह वे ज्ञान निष्ठ हो गयी –तब श्री कृष्ण उन्हें अपनी माया से मोहित सा  करते हुए हंसने लगे — उनकी मुस्कान से मोहग्रस्त होकर यशोदा जी की स्मरण शक्ति  विलुप्त हो गयी — उन्होंने श्री कृष्ण का जो वैभव देखा था  उसे वे तत्काल भूल गयी

एक बार यशोदा जी दधि मंथन कर रही थी –बाल क्रीड़ा करते हुए श्री कृष्ण माँ से ताजा निकला मक्खन मांग रहे थे –जब वह उन्हें नही मिला तब कुपित होकर उन्होंने एक पत्थर के टुकड़े को फेंककर दही मथने  के पात्र को फोड़ दिया –और फिर वे भाग  चले — यशोदा भी उन्हें पकड़ने को पीछे भागीं –कृष्ण यशोदा जी से केवल एक हाथ आगे थे फिर भी यशोदा उन्हें पकड़ नही पायी –
यहां इस लीला में भी   प्रभु के  #ईश्वरीय  #वैभव के दर्शन हुए —  जो योगीश्वरों के लिए भी दुर्लभ है , वे माता की पकड़ में कैसे आ सकते थे  ? – फिर प्रभु ने भक्तो के प्रति अपनी भक्तवश्यता दिखायी इसलिए वे जानबूझकर माता के हाथ आ गए — अपने नटखट पुत्र को पकड़कर यशोदा ने  #ऊखल से बांधना आरम्भ किया – वे जो भी बड़ी से बड़ी रस्सी उठाती वह भी 2 अंगुल छोटी रह जाती —

जो प्रकृति के तीनों गुणों  से न बंध  सके , वे प्रकृति से परे विद्यमान परमात्मा यहां के गुण से कैसे बन्ध सकते थे ? — परमात्मा को अभिमान रहित , शरणागत होकर परम् प्रेम के बन्धन से ही बांधा जा सकता है – यही अहम ही 2 अंगुल का फर्क है –जब मां परेशान हो गयी तब प्रभु स्वयँ  बँधन में आ गए –

जब यशोदा जी किसी दूसरे काम मे लग गयी तब श्री हरि , ओखली को खींचते हुए यमुना के तट पर मौजूद एक दूसरे से जुड़े हुए पुराने विशाल अर्जुन के दो वृक्षों के बीच से निकल गए -ओखली वहां फंस गयी तब प्रभु ने उसे सहसा अपनी ओर खींचा जिससे वे दोनों  #विशाल  #वृक्ष उखड़कर पृथ्वी पर गिर गए – फिर उन दोनों से दो #देवता निकले जिन्होंने श्री कृष्ण की परिक्रमा और स्तुति की और फिर चले गए – श्री नारद जी ने बताया कि पूर्व में यह दोनों कुबेर के पुत्र  #नलकूबर और  #मणिग्रीव थे – यौवन और धन के घमण्ड में  मदिरा के नशे वे नङ्ग धड़ंग होकर घूम रहे थे तभी  महामुनीं देवल ने उन्हें इस हाल में निर्लज्जता और अभद्रता करते देखकर उन्हें वृक्ष  हो जाने का श्राप दे दिया था और उनकी मुक्ति अब श्री कृष्ण द्वारा  हुयी —

** पिछली शताब्दी में सर जगदीश चन्द्र वसु द्वारा वृक्षों में जीवन सिद्ध करने तक प्रबुद्ध कहलाने वाले आधुनिक  विद्वान  वृक्षों को जीवनहीन ही मानते थे जब कि  लाखो वर्ष पूर्व से  हमारे  यहां  इन सब मे जीवन माना जाता रहा है -****

एक दिन मुनि दुर्वासा श्री कृष्ण का दर्शन करने ब्रज में पधारे और प्रभु की सामान्य बालको सी बाल लीला को देखकर  #मोहग्रस्त होकर प्रभु के ईश्वरत्व  पर सन्देह करने लगे –श्री कृष्ण के हंसते ही दुर्वासा ने  उनके  मुख में जाकर सातों लोको सहित विशाल ब्रम्हाण्ड को देखा -वहां श्वेत  पर्वत पर रूककर उन्होंने सैकड़ो वर्षो तक भगवान का भजन किया – फिर  #नैमित्तिक  #प्रलय का दृश्य भी देखा , पानी मे बहते हुए उन्होंने दूसरे ब्रम्हाण्ड तथा फिर एक दिव्य श्रष्टि का दर्शन किया – #हजारो  #ब्रम्हांडों को उन्होने देखा –फिर #बिरजा नदी और असंख्य ब्रम्हांडों के स्वामी श्री कृष्ण भगवान के सहित ,#गोलोक के भी उन्हें दर्शन हुए – भगवान श्री कृष्ण के दुबारा हंसते ही वे उनके मुख से निकल आये और शरणागत होकर  बाल कृष्ण के श्री चरणों मे गिर कर उन्होने परम् प्रभु की स्तुति की  और   फिर तपस्या करने बद्रिकाश्रम को चले गए —

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