गोकुल में निरन्तर उपद्रव होते देखकर श्री नन्दराय ने अपने सहायक नन्दो , उपनन्दों , वृषभानुओ ,और वृद्ध गोपो की सभा बुलाकर उनकी राय मांगी — तब वृद्ध बुद्धिमान गोप #सानन्द ने श्री बलराम ,श्री कृष्ण को गोद मे उठाकर , गोकुल में उनपर पूतना ,शकट और तृणावर्त के आक्रमण और दोनों वृक्षों के बालको के पास गिरने की बात से उनकी रक्षा के प्रति शशंकित होने और इसलिए उनकी रक्षा के लिए -अपने परिवारों के साथ गोकुल को त्याग कर वृन्दाबन चल कर वहां बसने की राय दी —
वृद्ध गोप सानन्द ने नन्दराय को बताया कि मथुरामण्डल के अंदर साढ़े बीस योजन विस्तृत भूभाग को
” #दिव्य #माधुर्य #मण्डल ” या वृज कहते है –यह #वृन्दाबन नामक वन परिपूर्णतम भगवान के मन को भी हरण करने वाला उनका लीला क्रीड़ा स्थल है -इसका प्रलय में भी नाश नही होता है और तीर्थो के राजा प्रयागराज ने भी वृन्दाबन की स्तुति की है –
कथा है कि जब भगवान श्री कृष्ण पृथ्वी का भार उतारने के लिए भूतल पर श्री राधा जी के साथ पधारने लगे तब उन्होंने राधा जी की इच्छा से , अपने धाम से 84 कोस विस्तृत भूमि ,गोवर्धन पर्वत , और यमुना नदी को भूतल पर भेजा – यह गिरिराज गोवर्धन इसी लिए परम् पवित्र है —
गोप सानन्द की बात सुनकर नन्दराज , समस्त गोप गणों के साथ सभी सामान ,परिवारों और हाथी घोड़ो गायो के साथ वृन्दाबन में आकर यहां प्रथक प्रथक निवास स्थानों का निर्माण करके यहां रहने लगे —
गोप #वृषभानुवर ने अपनी पत्नी के साथ हाथी पर बैठकर , पुत्री #राधा को अंक में लिए गायकों से यशोगान सुनते हुए वृन्दाबन पंहुचकर वहां अपने लिए #वृषभानपुर ( बरसाना ) नामक नगर का निर्माण कराया –श्री कृष्ण — #नन्दनगर ( नन्दगाँव ) और वृषभानपुर में बालको के साथ क्रीड़ा करते हुए ,घूमते और गायो बछड़ो को चराते हुए तथा सभी गोप गोपियों को अपने मधुर व्योहार से प्रसन्न करते रहते थे
एक दिन उनके बछड़ो के झुंड में कंस का भेजा दैत्य #वत्सासुर बछड़ा रूप में मिल गया –श्री कृष्ण समझ गए – उस दैत्य ने अचानक आकर अपने पिछले पैरो से श्री कृष्ण के कंधों पर प्रहार किया — प्रभु ने उसके दोनों पैर पकड़ कर और घुमा कर पृथ्वी पर पटक दिया फिर उसे उठाकर कपित्थ वृक्ष पर दे मारा- इससे वह दैत्य तुरन्त मर गया , और उसकी विशाल ज्योति ( आत्मा ) प्रभु में लीन हो गयी – श्री नारद जी ने बताया कि यह वत्सासुर —
दैत्य ” मुर ” का पुत्र प्रमीला था ,एक बार उसने ब्राह्मण बनकर वशिष्ठ जी के आश्रम पर जाकर उनकी कामधेनु गाय की उनसे याचना की , त्रिकालदर्शी मुनि सब जान गए कि वह मुनियो की गायो का अपहरण करने के लिए ब्राह्मण बनकर आया है ,तब क्रोधित नन्दिनी गाय ने ही उस दैत्य को बछड़ा हो जाने का श्राप दे दिया था –
फिर एक दिन विशाल विकराल शरीर वाला #बकासुर नामक दैत्य वहां आया और उसने सहसा ही
श्री कृष्ण को निगल लिया -उस समय श्री कृष्ण ने बकासुर के शरीर के भीतर अपनी ज्योतिर्मय दिव्य देह को बढ़ा कर विस्तृत कर लिया –घबड़ाकर उसने श्री कृष्ण को उगल दिया और अपनी चोंचों को फैलाकर प्रभु की ओर दौड़ा – श्री कृष्ण ने उसकी दोनो चोचों को पकड़ लिया और चीर दिया — बकासुर की देह से निकली ज्योति भी श्री हरि में समा गयी — यह बकासुर पहले हयग्रीव नामक दैत्य का पुत्र #उत्कल था जो मुनिश्रेष्ठ आजली के श्राप से बगुला बन गया था —
इसी प्रकार #अघासुर नामक दैत्य ,विशाल अजगर के रूप में आया था , उसके विशाल मुख को पर्वत की गुफा समझकर ग्वाल बालो , बछड़ो के साथ श्री कृष्ण बलराम भी उसके मुख में प्रवेश कर गए थे – सबके मुख में पँहुचने के बाद उस दैत्य ने सभी को मुख में बंद कर लिया –
तब श्री कृष्ण ने उसके उदर में अपने विस्तृत स्वरूप को बढ़ाना शुरू किया जिससे उसके प्राण उसका मस्तक तोड़ कर निकल गए और आत्मा श्री कृष्ण में विलीन हो गयी — तब सभी ग्वाल बाल व बछड़े आदि उसके मुख से निकल सके – जो बछड़े और बालक मर गए थे ,उन्हें श्री कृष्ण ने अपनी कृपा दृष्टि डालकर #जीवित कर दिया — यह दैत्य #शंखासुर का पुत्र ” #अघ “था — एक बार इसने महामुनीं अष्टावक्र की हंसी उड़ाने का अपराध किया था जिससे उनके श्राप से अजगर हो गया था।
अघासुर का उद्धार करने के बाद श्रीकृष्ण , गोप बालको के साथ भोजन करने लगे — खेल खेल में सभी बालक मिलकर एक दूसरे को अपने हाथो से भोजन कराने लगे – श्री ब्रम्हा जी ने जब बालको के साथ श्री कृष्ण को एक दूसरे का झूठा अपवित्र भोजन करते देखा तब परमात्मा की माया से मोहित होकर , श्री कृष्ण के ईश्वर होने पर सन्देह कर , उनकी मनोज्ञ महिमा को जानने का निश्चय किया —
श्री कृष्ण के कुछ दूर जाते ही ब्रम्हा जी ने समस्त गोप बालको और गायो बछड़ो का हरण कर लिया–जब ढूढने पर भी ग्वाल बाल और गाय बछड़े नही दिखाई दिए तब ब्रम्हा जी की करतूत जानकर , अखिल विश्वनायक श्री कृष्ण ने अपनी लीला से ही अपने आप को दो #भागों में #विभक्त कर लिया – एक भाग से स्वयम रहे तथा दूसरे भाग से गायब हुए समस्त गायो , बछड़ो और गोप बालको की उसी समान सृष्टि की —
प्रभु अपने दिव्य विग्रह से बालक गौओ बछड़ो के रूप में स्वयम ही प्रकट हो गए –घरों को जाने पर भी किसी ने उन्हें नही पहचान पाया –
एक वर्ष बाद श्री ब्रम्हा जी फिर वहां आये तब सभी गायो , बालको को वहां देखकर विस्मित होकर , फिर जहां उन्होंने इन्हें छिपाया था वहां गए -वहां भी सबको पूर्ववत मौजूद देखकर , उनके ज्ञान चक्षु खुल गए – प्रभु की महिमा देखकर उन्होंने श्री हरि से क्षमा मांगी और गदगद वाणी से प्रभु की स्तुति की —
वत्सासुर , बकासुर ,और फिर अघासुर के आक्रमण से श्री कृष्ण सकुशल बच गए , इस प्रसन्नता में नन्द जी द्वारा ब्राह्मणों को विविध प्रकार के दान दिए गए —
*** अपनी बात ****
प्रभु अपने आश्रितों की हमेशा रक्षा करते है – वत्सासुर धोखा देने के लिए बछड़ा बनकर आया था , प्रभु ने गोपो को धोखेबाज से बचाया —
ज्यादा तर्क वितर्क , #बकबक करके भक्त को साधना के पथ से हटाने वाले #बकासुर ही तो होते है – उसके अत्याचार से भी प्रभु ने गोपो को बचाया –
और #साधको , प्राणियों को #निगलकर उन्हें पापो से सराबोर कर देने वाला वाले #अघासुर को भी प्रभु ने मार कर भक्तो का मार्ग निष्कंटक किया —
रामावतार में श्री हरि ने शबरी के झूठे बेरो को खाया था और यहां भी अपने आश्रित गोप बालको के प्रेम में बंधकर उनके झूठे भोजन को उनके हाथों से मिल बांट कर खाया-
क्योकि प्रभु हमारे अपने और हम में से ही है –