हिमाचल में कांग्रेस मुखिया का लंबा गायब होना, आलाकमान एटम बम फोड़ने में व्यस्त

शिमला
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस को तलाश है एक ऐसे नेता की जो रबर स्टांप न हो, अनुभवी हो, सबको साथ लेकर चलना जानता हो और सुयोग्य भी हो। बस इन्हीं मानदंडों को पूरा करने वाले व्यक्ति की यह तलाश प्रदेश में नौ माह से जारी है। राजीव शुक्ल के बाद रजनी पाटिल हिमाचल कांग्रेस प्रभारी बन गईं…। वह दो बार सबकी राय भी ले चुकीं, शिमला से लेकर नई दिल्ली तक बैठकों के कई दौर हो चुके। पार्टी के सार्वजनिक राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की कुर्सी पर आसीन मुद्रा के साथ कई कांग्रेसजन चित्र खिंचवा कर आ चुके। इस बार तो कांग्रेस की आणविक शक्ति राहुल गांधी के साथ भी वरिष्ठजन की बैठक हो चुकी। मगर प्रदेश अध्यक्ष और राज्य एवं जिला कार्यकारिणियां वैसे ही गायब हैं, जैसे हिमाचल प्रदेश से प्रभावी आपदा राहत।
कांग्रेस आलाकमान क्यों कर रही देरी?
यह प्रदेश का प्राथमिक विषय हो न हो, कांग्रेस का अति महत्वपूर्ण विषय अवश्य है। कांग्रेस की एक ही दुविधा है। कहीं निर्णय गलत न हो जाए, इस आशंका में अनिर्णय। आप कहेंगे, इससे क्या अंतर पड़ता है कि कांग्रेस, प्रदेश अध्यक्ष बनाए या न बनाए। अंतर इसलिए पड़ता है, क्योंकि आलाकमान एटम बम फोड़ने में इतना व्यस्त हैं कि उन्हें हिमाचल प्रदेश की आवाज सुनाई नहीं देती। आलाकमान चाहे तो एक पल में प्रदेश अध्यक्ष बना सकता है। वह क्या संकेत देना चाहता है, यह आलाकमान ही जानता है, किंतु संदेश ये जा रहे हैं कि यदि कांग्रेस में गुट भी हैं तो शीर्ष नेतृत्व गुटों में घिर गया है।
वह न मुख्यमंत्री की पसंद का अध्यक्ष बना पा रहा है और न अन्य पक्षों की पसंद का। आप मुख्यमंत्री को कोई सख्त संदेश देना चाहते हैं तो उनकी मर्जी के बगैर किसी को भी बना दें। यदि दूसरे गुट को कोई सख्त संदेश देना है तो मुख्यमंत्री की पसंद का बना दें। आखिर इसमें क्या है कि आप रोज इस विचार को प्रसारित और पुख्ता होने दें कि हिमाचल प्रदेश में एक भी ऐसा नेता नहीं है जो क्रमश: अनुभवी, सबको साथ लेकर चलने वाला, सुयोग्य होने के साथ ही आयरन स्टांप भी हो। दल सत्ता में हो या न हो, प्रवक्ता नाम का उपकरण आधारभूत जरूरत है, जिससे कांग्रेस महीनों से वंचित है। सरकार का संदेश कौन देगा। कांग्रेस तो कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के लिए भी जानी जाती है। यदि संतुलन की इतनी ही चिंता है तो बना दें पहले की तरह बिना कार्य के कार्यकारी अध्यक्ष।
भाजपा राज्य सरकारों में कैसे बना रही बैलेंस?
भारतीय जनता पार्टी का भला हो कि उन्होंने बड़े ही नहीं, छोटे राज्यों में भी उपमुख्यमंत्री का पद सृजित कर आपको सरकार के समीकरण संतुलित रखने की विधि बता दी। हिमाचल प्रदेश के लिए यह विषय इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि कांग्रेस के युवा हाथों से लेकर पुराने हाथ काम की प्रतीक्षा में हैं। संगठन बना हो, दायित्व तय हों, प्रभार तय हों तो हर हाथ को काम का दृश्य बनता है। अन्यथा, भुने हुए हाथों से कोयले ही झरेंगे।
क्या कर रहे हैं कांग्रेस नेता?
प्रतिभा सिंह कहती हैं कि वीरभद्र सिंह की लगेसी को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। उपमुख्यमंत्री एवं अन्य मंत्री कहते हैं कि साजिशें सफल नहीं होने देंगे। मुख्यमंत्री के साथ जुड़े पक्ष कहते हैं कि गैर हाजिर रहने वाले हाजिर हों। यह तो स्वयं पर ही वार दर वार करना हुआ। जितना समय इन बातों के लिए निकालते हैं, उतना समय सचिवालय में बैठने, कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय राजीव भवन में बैठने, विभागीय कार्यालयों के औचक निरीक्षण में लगाया जाए तो प्रदेश के साथ कांग्रेस का भी भला ही होगा। कांग्रेस अपने ही विरुद्ध सक्रिय है, इसका अनुमान यहां से भी होता है कि भरमौर के नेता ठाकुर सिंह भरमौरी चुनाव से ढाई वर्ष पूर्व घोषणा कर रहे हैं कि वह स्वयं भटियात से लड़ेंगे, जबकि उनका पुत्र भरमौर से लड़ेगा।
कांग्रेस में भी मार्गदर्शक मंडल यदि है तो क्या कौल सिंह, राम लाल ठाकुर, आशा कुमारी और ठाकुर सिंह भरमौरी जैसे नेता वहां के लिए हैं या उनसे किसी सक्रियता की भी अपेक्षा है। एक बात उठाई जाती है नेताओं के सम्मान की। सरकारी बोर्डों निगमों में समायोजन या पुनर्वासन की। यदि सम्मान की यही परिभाषा है तो एक आडिट इस बात का भी हो कि कितने बोर्ड निगम घाटे में हैं।
CM ने किसी अध्यक्ष बनाने का सुझाव दिया?
मुख्यमंत्री ने आलाकमान को पत्र लिखा है कि अनुसूचित जाति वर्ग से किसी को भी अध्यक्ष बना दें। अब देखना यह है कि आलाकमान उनकी बात पर कितना ध्यान धरता है। वैसे मुख्यमंत्री की पसंद का ख्याल रखना इसलिए भी आवश्यक है, ताकि द्वंद्व न हो, विकास हो। यदि आलाकमान को लगता है कि घर्षण से ही ऊर्जा उत्पन्न होगी और कांग्रेस को उसकी बेहद आवश्यकता है तो वह कोई भी प्रयोग कर सकता है। जो हो, शीघ्र हो तो बेहतर, क्योंकि और भी गम हैं हिमाचल प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष और कार्यकारिणी के सिवा। कांग्रेस के लिए मंथन का समय है कि क्या सभी रबर स्टांप हैं? दिल्ली और शिमला के बीच की राजनीतिक मैराथन में नेता भले ही हांफें न हांफें, वित्तीय बोझ से कराहता, आपदाओं के पत्थर झेलता हिमाचल जरूर हांफता है।