भाग-1
कह रघुपति सुनु भामिनि बाता। मानउँ एक भगति कर नाता॥
जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई। धन बल परिजन गुन चतुराई॥
भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा
आज का प्रसंग अरण्य काण्ड में रामजी शबरी मिलन है ।
भगवान शबरी के आश्रम में पहुंचते हैं ।मुनि मतंग के बचनो को याद कर शबरी प्रसन्न हो गयी।
सिर नवाकर, चरण धोकर,सुन्दर आसनों पर बैठाया । कन्द, मूल और फल राम जी को दिये ।
शबरी कहने लगी मैं आपकी कैसे स्तुति करूँ ।मैं नीच जाति की और अत्यंत मंदबुद्धि हूँ ।
रामजी ने कहा –हे भामिनि मैं तो
केवल भक्ति का ही सम्बन्ध मानता हूँ ।
जांति, पाति,कुल,धर्म, बडाई, धन,बल,कुटुम्ब, गुण और चतुरता
इन सबके बावजूद भक्ति से रहित मनुष्य कैसा लगता है जैसे जलहीन बादल दिखाई देता है ।
यहाँ प्रभु ने भक्ति का महत्व बतलाया है । वाल्मीकि जी ने राम जी से यही कहा है–
जांति पांति धनु धरमु बडाई
प्रिय परिवार सदन सुखदाई
सब तजि तुमहि रहहि उर लाई
अर्थात आपकी भक्ति करे ।
कागभुशुन्ड जी ने गरुड़ जी को सुनाया–
पुनि रघुवीरहि भगति पिआरी
भगतिहि सानुकूल रघुराया
अर्थात राम भक्ति सबसे ऊपर है अन्य गौण है।
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥
रामजी ने शबरी को नवधा भक्ति
का उपदेश दिया है—
1.पहली भक्ति है संतो का सत्संग।
गोस्वामी जी ने कहा है कि–
बिनु सत्संग विवेक न होई
अर्थात बिना सत्संग के ज्ञान नहीं होता।बैसे भी शबरी ने अपने को मूढ और मंदमति कहा है ।
संतन्ह कर संगा
अर्थात केवल एक संत का साथ नहीं बल्कि विभिन्न संतों से सत्संग करना चाहिए ।
लंकिनी भी हनुमान जी से कहती है कि–
तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरिय तुला एक अंग
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सत्संग
2.दूसरी भक्ति है मेरे कथा प्रसंग में प्रेम ।
कथा को पूरे मनोभाव से श्रवण करना चाहिए जिससे स्वयं ही प्रेम
उतपन्न होगा ।
रामकथा है ही ऐसी जो सारे संसय दूर करती है—
रामकथा सुन्दर करतारी
संसय बिहग उडावन हारी
गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान॥
3.तीसरी भक्ति है अभिमान रहित होकर गुरु के चरण कमलो की सेवा ।
4.चौथी भक्ति यह है कि कपट छोड़ कर मेरे गुण समूहों का गान करे।
मंगलाचरण में गोस्वामी जी ने गुरु
के चरण कमलो की बंदना की है और उसका महत्व बताया है–
बंदहु गुरु पद पदम परागा
गुरु के चरण नखो की ज्योति मणियो के प्रकाश के समान है ।
उस ज्योति से हमारे हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है ।अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश हो जाता है । गुरु की चरण रज कोमल अंजन है जो नेत्रों के दोष दूर कर विवेक रूपी नेत्र खोलता है ।
चौथी भक्ति मेरे गुण समूहों का गान
रामजी के गुण समूह जगत का कल्याण करने वाले हैं–
जग मंगल गुनग्राम राम के
दान मुकति धन धरम धाम के
ये ललाट पर लिखे हुए अभाग्य लेखों को मिटाने वाले हैं–
मेटत कठिन कुअंक भाल के
नारदजी, हनुमान जी, शिव जी इसके सटीक उदाहरण हैं जो दिन रात राम गुनग्राम में व्यस्त रहते हैं।
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥
5.राम जी पांचवी भक्ति बताते है–
मेरे नाम अर्थात राम मन्त्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास–यही पांचवी भक्ति है जो वेदों में प्रसिद्ध है ।
मंगलाचरण में गोस्वामी जी ने राम नाम की महिमा बताई है जो महामंत्र है और जिसको शिव जी हमेशा जपते हैं–
महामंत्र जोई जपत महेसू
राम नाम की महिमा से गणेश जी प्रथम पूज्य हैं ।बाल्मीकजी इसी
मंत्र को उल्टा जपकर ब्रह्म रिष हो गये। शिव जी ने पार्वती को बताया कि एक राम नाम सहस्र नाम के समान है तबसे पार्वती जी भी भोले नाथ के साथ जपती है —
सहस्रनामात तुल्यम राम नाम वरानने
और भगवान में दृढ़ विश्वास होना चाहिए । बाल्मीकजी ने राम को जो सुन्दर 14 घर बताये उनमें–
कर नित करहि राम पद पूजा
राम भरोस हृदय नहिं दूजा
और
गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा
जेहि सब भांति तुम्हार भरोसा
अर्थात भगवान पर उनका दृढ़ विश्वास है । ये भी पांचवी भक्ति ही है ।
यथा अल्प मति
🌹🙏जयजय सीता राम 🙏🌹