“शंखचूर्ण की उत्पत्ति”
सनत्कुमार जी बोले ;– हे महामुने! शंखचूर्ण नाम का एक दैत्य था। जिसका वध भगवान शिव ने स्वयं अपने हाथों से त्रिशूल मारकर किया था। अब मैं आपको उस शंखचूर्ण नामक दैत्य के विषय में बताता हूं।
हे मुने! आप यह जानते ही हैं कि विधाता के पुत्र मरीचि हुए हैं और उनके पुत्र महर्षि कश्यप हुए। मरीचि के पुत्र कश्यप मुनि बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के संत थे । वे बड़े ही धर्मात्मा थे और इस सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्माजी की हर आज्ञा को शिरोधार्य मानकर उसका पालन किया करते थे। प्रजापति दक्ष ने उनके व्यवहार और गुणों से प्रसन्न होकर अपनी तेरह कन्याओं का विवाह महर्षि कश्यप से कर दिया था। इन्हीं की संतानों से यह पूरा संसार भर गया। कश्यप मुनि की तेरह पत्नियों में से एक पत्नी का नाम दनु था । दनु रूपवती, गुणवती होने के साथ-साथ परम सौभाग्यवती थी। वह एक अत्यंत शांत साध्वी भी थी। उन्हीं दनु के अनेकों पुत्र हुए। उनका विप्रचित नाम का पुत्र बहुत ही बलशाली और पराक्रमी था। उसका भी दंभ नाम का एक पुत्र हुआ। दंभ भी अपने पिता की तरह धार्मिक विचारों को मानने वाला था। दंभ भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। इतना धार्मिक होने के पश्चात भी उसके कोई संतान नहीं हुई। तब वह बड़ा निराश हो गया और उसने शुक्राचार्य को अपना गुरु बनाया। उसने उनसे कृष्ण मंत्र ग्रहण किया। तत्पश्चात दंभ पुष्कर नामक तीर्थ में चला गया और वहां एक लाख वर्ष तक कठोर तपस्या करता रहा। उसकी इस कठोर तपस्या को देखकर सभी देवता ब्रह्माजी को अपने साथ लेकर भगवान विष्णु के पास गए।
भगवान विष्णु के पास पहुंचकर सभी देवताओं ने उन्हें आदरपूर्वक प्रणाम किया और दंभ के भीषण तप के बारे में भी बताया। तब सारी बातें जानकर ,,,
भगवान श्रीहरि बोले ;- हे देवताओं! मैं जानता हूं कि दंभ मेरा अनन्य भक्त है। वह अपने मन में पुत्र प्राप्ति की कामना लेकर पिछले एक लाख वर्षों से मेरी कठोर तपस्या कर रहा है। मैं अवश्य ही अपने प्रिय भक्त दंभ की इच्छापूर्ति करूंगा। आप निश्चिंत होकर अपने स्थान पर चले जाइए।
भगवान श्रीहरि के इन वचनों को सुनकर ब्रह्माजी और देवराज इंद्र तथा सभी देवता उन्हें प्रणाम करके अपने-अपने लोकों को चले गए। तब भगवान विष्णु भी अपने भक्त दंभ को उसकी तपस्या का फल देने के लिए पुष्कर गए। वहां उन्हें अपने सामने पाकर दंभ बहुत प्रसन्न हुआ और उनके चरणों में लेटकर उन्हें प्रणाम कर उनकी स्तुति करने लगा।
तब श्रीविष्णु बोले ;- हे दंभ ! मैं तुम्हारी इस कठोर तपस्या से बहुत प्रसन्न हूं। तुम अपना अभीष्ट वर मांग सकते हो। आज मैं तुम्हारी हर मनोकामना पूर्ण करूंगा।
भगवान विष्णु के ये वचन सुनकर दंभ हाथ जोड़कर बोला ;- हे देव! यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो मुझे अपने जैसा वीर और पराक्रमी पुत्र प्रदान कीजिए । तब श्रीहरि विष्णु ‘तथास्तु’ कहकर वहां से अंतर्धान हो गए। इसके बाद दंभ भी प्रसन्नतापूर्वक अपने घर लौट आया। कुछ समय पश्चात दंभ की पत्नी गर्भवती हुई। तब दंभ के घर में एक अलौकिक तेज विद्यमान था। समय आने पर दंभ की पत्नी के गर्भ से एक पुत्र का जन्म हुआ। मुनियों ने उसका नामकरण संस्कार करके उसका नाम शंखचूड़ रखा।
ॐ नमः शिवाय