वास्तव में राम अनादि ब्रह्म ही हैं। अनेका नेक संतों ने निर्गुण राम को अपने आराध्य रूप में प्रतिष्ठित किया है। राम नाम के इस अत्यंत प्रभावी एवं विलक्षण दिव्य बीज मंत्र को सगुणोपासक मनुष्यों में प्रतिष्ठित करने के लिए दशरथी राम का पृथ्वी पर अवतरण हुआ है।
कबीरदास जी ने कहा है –
आत्मा और राम एक है-
‘ आतम राम अवर नहिं दूजा।’
राम नाम कबीर का बीज मंत्र है। राम नाम को उन्होंने अजपा जाप कहा है।
राम शब्द का अर्थ है
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‘रमंति इति रामः’
जो रोम-रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है वही राम हैं।
इसी तरह कहा गया है –
‘रमन्ते योगिनो यस्मिन स रामः’
अर्थात् योगीजन जिसमें रमण करते हैं वही राम हैं।
इसी तरह ब्रह्मवैवर्त पुराण
में कहा गया है –
‘ राम शब्दो विश्ववचनो, मश्वापीश्वर वाचकः’
अर्थात् ‘रा’ शब्द परिपूर्णता का बोधक है और ‘म’ परमेश्वर वाचक है। चाहे निर्गुण ब्रह्म हो या दाशरथि राम हो, विशिष्ट तथ्य यह है कि राम शब्द एक महामंत्र है।
राम मन्त्र का अर्थ
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‘ राम ‘ स्वतः मूलतः
अपने आप में पूर्ण मन्त्र है।
‘र’, ‘अ’ और ‘म’, इन तीनों अक्षरों के योग से ‘राम’ मंत्र बनता है। यही राम रसायन है।
‘र’ अग्निवाचक है।
‘अ’ बीज मंत्र है।
‘म’ का अर्थ है ज्ञान।
यह मंत्र पापों को जलाता है,
किंतु पुण्य को सुरक्षित रखता है और ज्ञान प्रदान करता है। हम चाहते हैं कि पुण्य सुरक्षित रहें, सिर्फ पापों का नाश हो।
‘अ’ मंत्र जोड़ देने से अग्नि केवल पाप कर्मो का दहन कर पाती है और हमारे शुभ और सात्विक कर्मो को सुरक्षित करती है। ‘म’ का उच्चारण करने से ज्ञान की उत्पत्ति होती है। हमें अपने स्वरूप का भान हो जाता है। इसलिए हम र, अ और म को जोड़कर एक मंत्र बना लेते हैं-राम। ‘म’ अभीष्ट होने पर भी यदि हम ‘र’ और ‘अ’ का उच्चारण नहीं करेंगे तो अभीष्ट की प्राप्ति नहीं होगी।
राम सिर्फ एक नाम नहीं अपितु एक मंत्र है, जिसका नित्य स्मरण करने से सभी दु:खों से मुक्ति मिल जाती है। राम शब्द का अर्थ है- मनोहर, विलक्षण, चमत्कारी, पापियों का नाश करने वाला व भवसागर से मुक्त करने वाला। रामचरित मानस के बालकांड में एक प्रसंग में लिखा है –
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू।
राम नाम अवलंबन एकू।।
अर्थात कलयुग में न तो कर्म का भरोसा है, न भक्ति का और न ज्ञान का। सिर्फ राम नाम ही एकमात्र सहारा हैं।
स्कंदपुराण में भी राम नाम की महिमा का गुणगान किया गया
है –
रामेति द्वयक्षरजप: सर्वपापापनोदक:।
गच्छन्तिष्ठन् शयनो वा मनुजो रामकीर्तनात्।।
इड निर्वर्तितो याति चान्ते हरिगणो भवेत्।
–स्कंदपुराण/नागरखंड
अर्थात यह दो अक्षरों का मंत्र(राम) जपे जाने पर समस्त पापों का नाश हो जाता है। चलते, बैठते, सोते या किसी भी अवस्था में जो मनुष्य राम नाम का कीर्तन करता है,
और अंत में भगवान विष्णु का पार्षद बनता है।
“राम रामेति रामेति रमे रामे
मनोरमे ।
सहस्र नाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने ।।”
।। राम ।।
कलियुग केवल नाम अधारा!!!!!
स्कन्दपुराण के ब्राह्मखंड में व्यास जी कहते हैं – जो लोग राम-राम-राम इस मंत्र का उच्चारण करते हैं, खाते, पीते, सोते, चलते और बैठते समय, सुख में या दुःख में राम मंत्र का जप करते हैं, उन्हें दुःख, दुर्भाग्य व व्याधि का भी भय नहीं रहता। उनकी आयु, सम्पति और बल प्रतिदिन बढ़ते रहते हैं। राम का नाम लेने से मनुष्य भयंकर पाप से छूट जाता है। वह नरक में नहीं पड़ता और अक्षय गति को प्राप्त होता है। पार्वती द्वारा शिव जी से पूछने पर शिवजी कहते हैं,#पद्मपुराण उत्तरखंड।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।।
रकारादीनि नामानि शृण्वतो मम पार्वति।
मन: प्रसन्नतां याति रामनामाभिशंकया।। (पद्म. उत्तर. २८१।२१-२२)
’मैं तो ‘राम! राम! राम!’ इस प्रकार जप करते हुए ‘श्रीराम’ नाम में ही निरन्तर रमण किया करता हूँ। ‘राम’ नाम सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के समान है। रकारादि जितने नाम हैं, उन्हें सुनकर ‘राम’ नाम की आशंका से मेरा मन प्रसन्न हो जाता है।’
*नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥
कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू॥
भावार्थ:-कलियुग में न कर्म है, न भक्ति है और न ज्ञान ही है, राम नाम ही एक आधार है। कपट की खान कलियुग रूपी कालनेमि के (मारने के) लिए राम नाम ही बुद्धिमान और समर्थ श्री हनुमान्जी हैं॥
कहते हैं कि कलियुग ने आने के लिए राजा परीक्षित से बहुत अनुनय-विनय की। कहा कि घबराइए नहीं महाराज , हम किसी को तंग नहीं करेंगे , बस ‘ स्वर्ण ‘ में घर बसाएंगे। हमारे साथ दो-चार संगी , साथी होंगे- राग , द्वेष , ईर्ष्या , काम-वासना आदि। अपने गुण बताते हुए कलियुग ने कहा- सुनो हमारी महिमा! हमारे राज में जो प्रभु का ‘ केवल ‘ नाम ले लेगा , उसकी मुक्ति निश्चित है।
और तो और , मन से सोचे गए पाप की हम सजा नहीं देंगे , पर मन से सोचे गए पुण्य का फल जरूर देंगे। राजा परीक्षित ने कलियुग को आने दिया तो सबसे पहले वह राजा के सोने के मुकुट में ही विराजमान हुआ और सबसे पहले उन्हें ही मृत्यु की ओर धकेल दिया।
कलियुग को सभी कोसते हैं , सभी क्रोध , राग , द्वेष और वासना से ग्रस्त हैं। कोई कहता है काश , हम सतयुग में पैदा हुए होते। कोई त्रेता और द्वापर युग के गुण गाता है।
तुलसीदास ने जन-मानस की हालत देखकर समझाया कि कलियुग में बेशक बहुत सी गड़बडि़याँ हैं , मगर उन सबसे बचने का उपाय जितनी सरलता से कलियुग में मिल सकता है , उतनी सरलता से किसी और काल में नहीं मिला। पहले प्रभु को पाने के लिए ध्यान करना पड़ता था।
त्रेता में योग से प्रभु मिलते थे , द्वापर में कर्मकांड का मार्ग था। ये सभी मार्ग नितांत कठिन और घोर तपस्या के बाद ही फलीभूत होते हैं , पर कलियुग में ईश्वर को प्राप्त करना पहले के मुकाबले बड़ा ही सरल हो गया है। कैसे भाई ?
हर मत और संप्रदाय ने गुण गाया है ‘ नाम ‘ का। यह वह मार्ग है जहाँ विविध संप्रदाय एकमत हो जाते हैं। तभी तो गोस्वामी तुलसीदास ने कहा: कलियुग केवल नाम अधारा। सुमिरि सुमिरि नर उतरहिं पारा।।
नाम जप में किसी विधिविधान , देश , काल , अवस्था की कोई बाधा नहीं है। किसी प्रकार से , कैसी भी अवस्था में , किसी भी परिस्थिति में , कहीं भी , कैसे भी नाम जप किया जा सकता है। इस नाम जप से हर युग में भक्तों का भला हुआ।
श्रीभद् भागवत में कथा आती है अजामिल ब्राह्माण की , जिसने सतयुग में घोर पाप किया। पत्नी के होते हुए वेश्या के पास रहा। वेश्या के पुत्र का नाम नारायण रख दिया। मरते समय पुत्र को पुकारा , ‘ नारायण! ‘ तो स्वयं नारायण आ गए।
ऐसी ही एक और कथा है गज ग्राह युद्ध की। गज ने अपनी सूंड तक अपने को डूबते पाया तो पुकारा ‘ रा! ‘ इतनी भी शक्ति नहीं थी कि पूरा ‘ राम ‘ कह दे। पर प्रभु ने भाव समझ लिया और गज के प्राण बचा लिए।
त्रेता में वाल्मीकि ने नाम जप किया तो उल्टा। ‘ राम ‘ कह न सके , डाकू थे , मांसाहारी थे , सो ‘ मरा ‘ कहना सरल लगा , तोते की तरह रटते रहे तो स्वयं श्री राम पधारे कुटिया में। ‘ उलटा नाम जपत जग जाना। वाल्मीकि भए ब्रह्मा समाना।
‘ द्वापर युग में दौपदी ने भरी सभा में रोते हुए हाथ खड़े कर दिए। सभी का सहारा छोड़ दिया तो कृष्ण की याद आई। श्रीकृष्ण चीर रूप में प्रकट हुए।
कलियुग में तो नाम जप के भक्तों की भरमार है। कबीर , मीरा , रैदास , तुलसीदास , रहीम , रसखान , नानक , रामकृष्ण परमहंस , रमण महर्षि आदि। राजा परीक्षित के वैद्य धन्वन्तरि तो कहते थे कि ‘ नाम जप ‘ औषधि है , जिससे सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।
इस औषधि का लाभ संतों ने भी तो उठाया। हर अवस्था में , चिंता में , रोग में उन्होंने ‘ राम नाम ‘ का आश्रय लिया। लेकिन नाम जप का यह अर्थ नहीं कि पाप करने की छूट मिल गई। नाम से पापों का विनाश होता तो है , पर तभी जब व्यक्ति के हृदय में पिछले पापों के प्रति प्रायश्चित और उन्हें दोबारा न करने का संकल्प हो।
नाम जप की औषधि के साथ परहेज भी आवश्यक है। नाम जपते रहो , क्रोध स्वत: दूर हो जाएगा। जप में बुरी प्रवृत्तियां पीछे हटती जाती हैं। उन्हें जबरन हटाने का प्रयास न करो , बस नाम जपो , प्रेम से।
नाम जप माया रूपी संसार से उबरने का अमोघ मंत्र है , किन्तु इसके लिए हृदय का योग भी होना चाहिए। ईश्वर को पुकारने के लिए जब दिल से आवाज उठती है , तभी उस तक पहुंचती है।
।। हर हर महादेव ।।