विश्व-विधान, नियतिचक्र की अनुभूति के लिए विवेकयुक्त, निरपेक्ष बुद्धि की आवश्यकता है। अविवेकी, अज्ञ मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं का हल ही नहीं निकाल सकता, तो इस संसार के मूल नियम, मूल विधान को समझने की बात तो और भी दुरूह है। इस तरह के अज्ञानी जन जीवन की बाह्य घटना और उनके अच्छे-बुरे परिणामों से ही सुखी-दु:खी होते रहते हैं। वे नहीं समझते कि उन्हें सुधारने के लिए ही दुःख एवं कष्ट दंड रूप में किसी नियति की प्रेरणा से मिलते हैं। इसी तरह अच्छे कार्यों का परिणाम सुख, शांति, प्रफुल्लता, उल्लास, वरदान के रूप में मिलता है।
गंभीर चिंतन के द्वारा मनुष्य विचार करे तो उसे भौतिक बाह्य जगत के प्रत्येक क्रिया-कलाप के अंतर्गत एक शक्ति काम करती हुई मालूम पड़ेगी। एक नियत विधान के अनुसार संसार के कार्यों का नियमन, संचालन होता दिखाई देगा। आग छूने पर जला देती है, पानी गीला कर देता है, विद्युत छूने पर प्राण हरण कर लेती है, बरफ ठंढी लगती है। कदाचित नक्षत्र टकरा जाएँ तो विश्व में खलबली मच जाए। इसी तरह कई नियम देखे जा सकते हैं। ये बाह्य जगत में काम करते हैं इसलिए उन्हें भौतिक नियम कहा जाएगा। सूक्ष्म जगत में काम करने वाले “नैतिक नियम” कहलाते हैं। प्रत्यक्ष रूप में इन्हीं इंद्रियों के संयोग से इनको नहीं जाना जा सकता, किंतु गंभीरतापूर्वक सूक्ष्म दृष्टि के साथ देखने पर इन्हें उसी तरह जाना जा सकता है जैसे किसी भौतिक नियम को ।
नियतिचक्र की अनुकूल दशा में चलकर ही व्यक्ति और समाज की उन्नति-विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। इसके विपरीत चलना विश्वनियम का उल्लंघन करना, अपनी अवनति और पतन को निमंत्रण देना है। विद्युत का सदुपयोग करके उससे बड़े महत्त्वपूर्ण काम लिए जा सकते हैं। मशीनों, इंजिनों, पंखे, रेडियो तथा अन्य उपकरणों को गति मिलती है। सुंदर सुरुचिपूर्ण प्रकाश प्राप्त किया जाता है। सचमुच विद्युत ने संसार का नक्शा ही बदल दिया है। इसी बिजली को यदि गलत ढंग से छू लिया जाए तो यह प्राणघातक तक बन जाती है। आग का उपयोग मनुष्य की बहुत सी समस्याओं को हल कर देता है। अग्नि मनुष्य की जीवनदाता है, किंतु गलत ढंग से, नियम विरुद्ध होने पर यही प्राणलेवा बन जाती है। परमाणु शक्ति संसार के अभाव, गरीबी, अनेक समस्याओं का समाधान करने में समर्थ है, किंतु उसके गलत उपयोग से संसार का कुछ ही समय में नाश भी किया जा सकता है।
जिदंगी”मीठी बनाने के लिए अक्सर सही वक्त पर कड़वी घूंट पीना जरूरी होती है तभी अनुभव की धार,और जीवन के सार का सार्थक महत्व समझ आ पाता है। ज़िंदगी के सारे तजुर्बे,किताबो मे नही मिलते,रूबरू होना पड़ता है जमाने से इन्हे पाने के लिए.दोषों को छिपाने का नहीं मिटाने का उपाय करो गुणों को दिखाने का नहीं गुणों में समाने का उपाय करो “जिंदगी” जीने के लिए मिली थी लोगों ने सोचने में ही गुजार दी शरीर की हिफाजत धन से भी अधिक करनी चाहिए क्यों की शरीर बिगड़ने के बाद धन भी उसकी हिफाजत नहीं करता दुःख का कारण कर्म का अभाव सुख का कारण कर्म का प्रभाव और शांति का कारण स्वयं का स्वभाव है.!
कुछ घटनायें हमारी परीक्षा लेने नहीं आती…बल्कि, हमारे साथ जुड़े हुए लोगों का असली परिचय कराने आती हैं….
कुछ भी साथ नही जाता इंसान के बस ,जाता है नाम काम गुण, प्यार, व्यवहार, और बोल!!
बीत जाती है ज़िंदगी ये ढूँढने में कि ढूँढना क्या है? जबकि मालूम ये भी नही कि जो मिला है उसका करना क्या है
तहजीब अदब और सलीका भी तो कुछ है झुकता हुआ हर शख्स बेचारा नही होता हमारे कर्म हमे ही हमारे शरीर को भोगने पड़ते हैं अहंकार के वश दुःख पाता हैऔर जब कष्ट आते हैं तो धन भी खर्च होता है धन चाहे कितना भी इंश्योरेंस कंपनी दे दे पर कष्ट तो हमें ही होगा अतः अच्छे कर्मों की किश्त भरते रहे
मोक्ष कर्मों से मिलता है ईश्वर से मिलन कर्मों से मिलता है अच्छी जिंदगी कर्मों से मिलती है मां बाप पत्नी बच्चे दोस्त रिश्तेदारी अच्छा समाज पड़ोस मान समान ख्याति यूं ही नहीं मिलते और तो गुरू का दर भी अच्छे कर्मों से ही मिलता है अच्छे कर्मों की किश्त जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी काम आती है
मजबूर और मजबूत मे ज्यादा फर्क नही है स्वार्थी मनुष्य से मित्रता करोगे तो वो आपको मजबूर बना देगा और सच्चे मनुष्य से मित्रता करो गे तो वो आपको मजबूत बनाएगा
आशा और विश्वास कभी गलत नहीं होते। बस ये हम पर निर्भर करता है कि हमने आशा किससे की और विश्वास किस पर किया कष्ट और”विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं जो व्यक्ति साहस के साथ उनका सामना करते हैं वे सदैव सफल होते हैं