प्रेम में ऐसा जादू होता है कि रूखे-सूखे भोजन को भी व्यञ्जनों से ज्यादा स्वादिष्ट बना देता है। 

प्रेम में ऐसा जादू होता है कि रूखे-सूखे भोजन को भी व्यञ्जनों से ज्यादा स्वादिष्ट बना देता है। 

प्रेम में ऐसा जादू होता है कि रूखे-सूखे भोजन को भी व्यञ्जनों से ज्यादा स्वादिष्ट बना देता है।

श्रीकृष्ण के आगमन पर दुर्योधन ने 56 भोग बनवा रखे थे और कई कीमती हीरे-मोती और जवाहरातों की माला भेंट में देकर श्रीकृष्ण को अपने पक्ष में लेने की योजना बना रखी थी। श्रीकृष्ण से दुर्योधन ने कहाः “चलिये, भोजन करने।”

श्रीकृष्णः “मैं भोजन दो जगह पर ही करता हूँ। जहाँ प्रेम होता है वहाँ करता हूँ या बहुत भूख लगती है, प्राण संकट में होते हैं तो माँगकर भी खा लेता हूँ। अभी मुझे बहुत भूख नहीं है, प्राण संकट में भी नहीं हैं और प्रेमी का घर भी नहीं है।

तुम तो खुशामदखोरी करके खिलाते हो, इसलिए तुम्हारे भोजन की मुझे जरूरत नहीं है।”

दुर्योधनः “पकड़ लो इस श्रीकृष्ण को।”

अगर प्रेम होता तो कैद करवाता क्या ? श्रीकृष्ण चतुर्भुजी होकर ऊपर खड़े हो गये, दुर्योधन देखता ही रह गया !

बाद में श्रीकृष्ण विदुरजी के घर गये। विदुर जी घर पर नहीं थे, उनकी धर्मपत्नी थी। श्रीकृष्ण ने कहाः “चाची ! भूख लगी है।”

चाची भी चाची थी। केले लायी और भावविभोर होकर श्रीकृष्ण को गूदा खिलाने के बजाये छिलके खिलाती जाती और छिलके फेंकने के बजाय गूदा फेंकती जाती। श्रीकृष्ण भी प्रेम से छिलके खाते गये।

इतने में विदुर जी आये और देखा कि ‘अरे ! यह तो बावरी हो गयी है ! ये त्रिभुवनपति श्रीकृष्ण भी छिलके खाये जा रहे हैं !”

वे बोलेः “ये क्या कर रहे हैं, नाथ ! क्षमा करें… गलती हो गयी। लाइये मैं खिलाऊँ।”

श्रीकृष्णः “अब बस, भोजन हो गया चाचा ! मैं तो प्रेम का भूखा हूँ।”

पत्रं पुष्पं फल तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।

“जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र पुष्पादि मैं सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीतिसहित खाता हूँ।”

प्रेम से श्रीकृष्ण को जो भी अर्पण करते हैं, सब स्वीकार कर लेते हैं। किसी ने ठीक ही गाया हैः

भगवान भक्त के वश में होते आये….

दुर्योधन के मेवा त्यागे, साग विदुर घर खाये।

भगवान भक्त के वश में होते आये….

भगत के वश में है भगवान

भक्त बिना ये कुछ भी नहीं है

भक्त है इनकी शान………

बोलिए वृंदावन बिहारी लाल की जय🙏

🙏 यादि भक्ति सच्ची हो, निस्वार्थ भाव से और सच्चे मन से को जाए तो ईश्वर आपकी भक्ति को स्वीकार करता है। ईश्वर के पास अमीर गरीब,ऊंच नीच का कोई भेद नहीं..!!

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hamarameadmin

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