आखिर क्यों किया जगत के आदिपिता शिव ने विष पान ?

आखिर क्यों किया जगत के आदिपिता शिव ने विष पान ?

 

जिस प्रकार माता पिता अपनी संतान पर हो रहे आक्रमण या आने वाले खतरों को अपने ऊपर ले लेते हैं उसी प्रकार भगवान् श्री शिव अपनी करुणा के वशीभूत होकर अपनी सन्तानों की रक्षा के लिए हर प्रकार के विष का पान करते हैं , ऐसे ही पार्वती जी श्री महाकाली स्वरूप में अपनी सन्तानों की रक्षा के लिए भूतों को खा जाती हैं और दैत्यों का रक्तपान भी करती हैं , परंतु क्या हम हलाहल को पी सकते है या भूतों को खा सकते हैं, नहीं ! तो फिर हम श्री शिव के नाम पर नशा क्यों करते हैं ?
यह चिन्तन का विषय है कि हम श्री शिव के नाम पर नशा करते हैं तो हम जाने अनजाने में भगवान श्री शिव का अपमान करते हैं और विशेषकर शिवरात्रि के पावन दिन जोकि विशेष दिन है श्री शिव की कृपा को प्राप्त करने का उनसे योग प्राप्त करने का
श्री शिव मानव के हृदय में आत्मा रूप में स्थित हैं परंतु उनको कैसे प्राप्त करे
शिवरात्रि को श्री शिव और पार्वती जी का विवाह हुआ था और आज भी हम उनके इस मिलन के उत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं पर क्या आप जानते हैं कि आप के अंदर भी श्री शिव और पार्वती ( गौरी ) माता निवास करते हैं , आइये इस विषय में जानें , जब हम माँ के गर्भ में होते हैं तो तब श्री आदिशक्ति की शक्ति श्री सदाशिव के अंश आत्मा को लेकर हमारे गर्भ में स्थित भ्रूण में प्रवेश करती हैं और श्री शिव के अंश आत्मा को हृदय में स्थापित कर हमारे पूरे शरीर का निर्माण करने के बाद रीढ़ की हड्डी के अंत में स्थित तिकोनी हड्डी ( सेक्रम बोन ) में श्री गौरी के रूप में बैठ जाती हैं , इन गौरी रूपी शक्ति को योग की भाषा में कुण्डलिनी भी कहते हैं। गौरी स्वरूपा कुण्डिलिनी की ये ही इच्छा होती है कि जिस मानव के भीतर वे सुप्त हैं वो जीते जी उनका योग दुबारा श्री सदाशिव से करा दे।
योगी और साधक तपस्या और साधना के अलग अलग रूपों से इन्ही गौरी रूपी कुण्डलिनी को अपने सहस्त्रार चक्र पर ले जाने का प्रयास करते हैं और जब ये गौरी रूपी कुण्डलिनी शक्ति सहस्त्रार चक्र पर पहुँच कर श्री सदाशिव के श्री चरणों को छू लेतीं हैं तो साधक का आत्म साक्षात्कार घटित हो जाता है इस दिव्य घटना को ही शिव शक्ति का मिलन या उनका विवाह कहा जाता है। सहजयोग में श्री माताजी निर्मला देवी जी की अनुकम्पा से कुंडलिनी जागरण सहज ही हो जाता है तथा शिव के स्वरूप आत्मतत्व से कुंडलिनी का मेल तत्क्षण संभव हो सकता है।
हृदय में बसे श्री शिव प्रसन्न होते है-
१. आपके भोले भाले स्वभाव से
२. आपकी निश्छल भक्ति से
३. आपके नॉन डिमांडिंग होने से
४. परमात्मा को खोजने और पाने के सच्चे प्रयासों से
हृदय में बसे श्री शिव रुष्ट क्यों होते हैं-
१. आपके चालबाज स्वभाव से
२. उनकी भक्ति करने पर भी उनके गुण ना धारण करने से
३. अत्यधिक कर्म ( भागदौड़ या भागमभाग ) युक्त जीवन शैली अपनाने से
४. श्री शिव के नाम पर नशा करने से।
सहजयोग ध्यान आत्मा को पाने की ऐसी पद्धति है जिसमें सहजता से निःशुल्क आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है। अधिक जानकारी हेतु हमारे हेल्पलाइन नंबर 18002700800 पर कॉल कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।

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