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“जल जीवन मिशन में 10,000 करोड़ का संगठित घोटाला! – सीबीआई जांच की मांग तेज”

भोपाल। प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में हर घर तक स्वच्छ पेयजल पहुंचाने के लिए केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना “जल जीवन मिशन” अब भ्रष्टाचार के दलदल में फंसती दिख रही है। इस योजना के नाम पर प्रदेश के राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों और विभागीय तंत्र द्वारा 10,000 करोड़ रुपये के संगठित घोटाले का आरोप सामने आया है। योजना का उद्देश्य ग्रामीणों को पेयजल उपलब्ध कराना था, लेकिन आरोप है कि इसे जल्दबाजी में लागू कर “जल्दी-जल्दी मनी” मिशन में तब्दील कर दिया गया।

मामले को उजागर करते हुए वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक कटारे ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि योजना में व्यापक अनियमितताओं, कमीशनखोरी, तकनीकी नियमों की अनदेखी और फर्जी कागजी कार्यवाही से धन की बंदरबांट की गई। कटारे ने पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच और संबंधित अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज करने की मांग की है।


जल्दबाजी में बनी योजनाएं, तकनीकी विकल्पों की अनदेखी

कटारे ने बताया कि इससे पहले की “मुख्यमंत्री नल जल योजना” असफल साबित हो चुकी थी। इसके बावजूद जल जीवन मिशन में 27,000 ट्यूबवेल आधारित योजनाएं तैयार कर दी गईं, जबकि विशेषज्ञों ने Surface Water Scheme को तकनीकी रूप से ज्यादा उपयोगी माना था।

योजना की फंडिंग संरचना (45% केंद्र, 45% राज्य व 10% ग्राम पंचायत अंशदान) का भी पालन नहीं किया गया। Maintenance का कोई प्रावधान नहीं रखा गया, जिससे भविष्य में योजनाएं बेकार साबित होने की आशंका है।


फर्जी DPR और गूगल डेटा से तैयार रिपोर्ट

प्रमुख अभियंता कार्यालय के नोडल अधिकारी आलोक अग्रवाल पर आरोप है कि उन्होंने सभी जिलों को एक ही मॉडल DPR का प्रारूप भेजा और केवल आंकड़े भरकर वापस भेजने के निर्देश दिए।

कटारे का कहना है कि असली DPR बनाने के नाम पर कंसल्टेंट्स को भुगतान तो किया गया, लेकिन उन्होंने गूगल से लिए गए आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट सौंप दीं, जिन्हें बाद में बार-बार संशोधित करना पड़ा।


कमीशन के बिना नहीं जारी होते थे फंड

कटारे के मुताबिक, “जिस अधिकारी को जितना फंड चाहिए होता था, वह आलोक अग्रवाल और महेन्द्र खरे से संपर्क कर 1% कमीशन देने पर उसी दिन फंड जारी करवा लेता था।”

फंड जारी करने की इस साजिश को साबित करने के लिए कटारे ने अधिकारियों के मोबाइल नंबरों की कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) और रिकॉर्डिंग की जांच की मांग की है।


भ्रष्टाचार के केंद्र में संविदा पर नियुक्त ENC

कटारे ने आरोप लगाया कि पॉंच वरिष्ठ व नियमित CE मौजूद होने के बावजूद श्री के.के. सोनगरिया को संविदा पर ENC नियुक्त किया गया और उन्हें सभी प्रशासनिक व वित्तीय अधिकार सौंपे गए। इन्हीं की मिलीभगत से धन का बंटवारा हुआ।


Silver Ionizer में भारी गड़बड़ी

योजना में Silver Ionizer नामक उपकरण शामिल किया गया, जिसकी बाजार कीमत महज 4,000 रुपये है, लेकिन इसे 70,000 से 1 लाख रुपये में खरीदा गया। IIT चेन्नई की रिपोर्ट के अनुसार इस उपकरण की कोई उपयोगिता नहीं थी।


पुरानी पाइपलाइन को दिखाया नया

कटारे ने आरोप लगाया कि पुराने मुख्यमंत्री नल जल योजना में बिछाई गई पाइपलाइनों को नए बिल में दिखाकर पैसा निकाला गया। CIPET की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 3rd पार्टी टेस्टिंग कराई गई, जबकि वास्तविक रूप से माल उठाया ही नहीं गया।


टेंडर रिवीजन में भी साजिश

जब योजना का पैसा खत्म हो गया, तब ठेकेदारों से एक प्रतिशत कमीशन लेकर पुराने टेंडरों को रिवाइज कर दिया गया।

सिर्फ कुछ जिलों में टेंडर दरों में हुई बढ़ोतरी पर नजर डालें –

  • सिंगरौली में 265% वृद्धि

  • सिवनी में 117% वृद्धि

  • शिवपुरी में 184% वृद्धि

  • और 15 जिलों में 50% से अधिक की वृद्धि

केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार का संज्ञान लेकर पैसा रोक दिया, जिसके बाद राज्य सरकार को 2750 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़े।


थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन में पोल खुली

केंद्र सरकार ने थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन के लिए Ipsos Research Ltd. को नियुक्त किया। इस फर्म ने जिन गांवों को ‘हर घर जल’ घोषित किया गया था, वहां जांच की तो पाया कि न नल मिले, न जल।


खानापूर्ति की जांच और क्लीन चिट

कटारे ने कहा कि शिकायतों पर विभाग ने मात्र खानापूर्ति वाली जांच कर मंत्री व अफसरों को क्लीन चिट दे दी। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को खुद मंत्री व अधिकारियों की संपत्ति जांचने का अधिकार ही नहीं था, फिर भी दिखावा किया गया।


सीबीआई जांच की मांग

कटारे ने मांग की कि –

  • पूरे प्रकरण की न्यायालय की निगरानी में सीबीआई जांच कराई जाए

  • विभागीय मंत्री श्रीमती संपतिया उइके को तत्काल बर्खास्त किया जाए

  • प्रकरण के मुख्य आरोपी श्री के.के. सोनगरिया, आलोक अग्रवाल, महेन्द्र खरे पर अपराध पंजीबद्ध कर जांच हो

  • पूर्व एवं वर्तमान प्रमुख सचिव, मंत्री के स्टाफ और टेंडर रिवीजन में शामिल तकनीकी स्वीकृति देने वाले अधिकारियों पर भी FIR दर्ज की जाए

  • संबंधित मोबाइल नंबरों की CDR/रिकॉर्डिंग निकालकर सूक्ष्म जांच कराई जाए

कटारे ने कहा कि “यह केवल घोटाला नहीं बल्कि ग्रामीणों के जीवन से खिलवाड़ है। इसे उजागर करना लोकतंत्र और जनता के हक की लड़ाई है।”

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