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शेख म�जीब�र�रहमान की निशानियां बांग�लादेश से मिट रही हैं, पहले करेंसी नोट, ‘जय बांग�ला’ भी नहीं रहा राष�ट�रीय नारा

ढाका
बांग�लादेश में �क के बाद �क शेख म�जीब�र�रहमान की निशानियों को मिटाया जा रहा है। पहले करेंसी नोटों से शेख म�जीब�र�रहमान की तस�वीर हटाई गई और अब ‘जय बांग�ला’ को राष�ट�रीय नारे के दर�जे से भी हटा दिया गया है। यह कदम अंतरिम सरकार द�वारा हाई कोर�ट के �तिहासिक फैसले को च�नौती देने के बाद उठाया गया। दरअसल ‘जय बांग�ला’ नारा 1971 के स�वतंत�रता संग�राम का प�रतीक रहा है और इसे बांग�लादेश के पहले प�रधानमंत�री शेख म�जीब�र�रहमान ने जन-जन में लोकप�रिय बनाया। 2020 में शेख हसीना सरकार के दौरान हाई कोर�ट ने इसे राष�ट�रीय नारा घोषित किया था। अदालत ने कहा था कि सरकारी कार�यक�रमों, राष�ट�रीय दिवसों और शैक�षिक संस�थानों में इसका उपयोग अनिवार�य रूप से किया जा�।

स�प�रीम कोर�ट ने लगाई हाई कोर�ट के फैसले पर रोक
मंगलवार को स�प�रीम कोर�ट की अपील डिवीजन ने हाई कोर�ट के इस फैसले पर रोक लगाते ह�� ‘जय बांग�ला’ को राष�ट�रीय नारे का दर�जा समाप�त कर दिया। म�ख�य न�यायाधीश सैयद रिफात अहमद की अध�यक�षता वाली चार सदस�यीय बेंच ने यह निर�णय लिया। अतिरिक�त अटॉर�नी जनरल अनिक आर हक ने कहा, “‘जय बांग�ला’ अब राष�ट�रीय नारे के रूप में मान�यता प�राप�त नहीं रहेगा।� पिछले क�छ महीनों में बांग�लादेश के राजनीतिक और सांस�कृतिक प�रतीकों में बदलाव तेजी से ह�आ है। शेख म�जीब�र�रहमान की तस�वीर को पहले ही बैंक नोटों से हटा दिया गया था। अब ‘जय बांग�ला’ पर ह�ई कार�रवाई से यह सवाल उठने लगा है कि क�या बांग�लादेश की नई अंतरिम सरकार शेख म�जीब की विरासत को खत�म करने की कोशिश कर रही है?

हसीना के जाते ही बदलने लगी बांग�लादेश की तस�वीर
5 अगस�त को शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से बांग�लादेश में बड़े पैमाने पर बदलाव देखे जा रहे हैं। ‘जय बांग�ला’ को हटा� जाने को इस बदलाव का अहम हिस�सा माना जा रहा है। हालांकि, यह नारा न केवल राजनीतिक पहचान था बल�कि देश के स�वतंत�रता संग�राम का भावनात�मक प�रतीक भी था। बांग�लादेश की अंतरिम सरकार के इस कदम ने देश की राजनीति में नई बहस को जन�म दिया है। म�जीब समर�थक इसे स�वतंत�रता संग�राम और उनकी विरासत के खिलाफ साजिश मान रहे हैं। दूसरी ओर, सरकार इसे ‘न�यायिक प�रक�रिया’ का हिस�सा बता रही है। क�या ‘जय बांग�ला’ का हटना महज �क कानूनी निर�णय है, या यह इतिहास बदलने की �क सोची-सम�ी रणनीति? यह सवाल बांग�लादेश के राजनीतिक भविष�य के लि� बेहद अहम है।

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