नई दिल�ली
कांग�रेस ने सकल घरेलू उत�पाद (GDP) के आंकड़ों का हवाला देते ह�� केंद�र सरकार पर निशाना साधा। यह आरोप लगाया कि भारत के विकास में मंदी है, लेकिन प�रधानमंत�री नरेंद�र मोदी प�रचार-प�रसार में लगे ह�� हैं। पार�टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि जीडीपी वृद�धि के तिमाही आंकड़ों से पता चलता है कि निजी निवेश स�स�त बना ह�आ है। मध�यम और दीर�घकालिक आर�थिक क�षमता तेजी से खत�म हो रही है। स�थिति का मूल कारण श�रमिकों की मजदूरी में वृद�धि नहीं होना है। उन�होंने कहा कि भारत के लोग ‘होप’ में जी रहे हैं जबकि प�रधानमंत�री सिर�फ ‘हाइप’ बनाने में लगे हैं। रमेश ने सोशल मीडिया मंच �क�स पर �क पोस�ट में कहा, ‘ज�लाई से सितंबर 2024 के लि� कल शाम जारी कि� ग� जीडीपी विकास के आंकड़े अन�मान से कहीं अधिक खराब हैं। भारत में 5.4 प�रतिशत की मामूली वृद�धि दर�ज की गई है और खपत में वृद�धि भी महज 6 प�रतिशत है।’

जयराम रमेश ने दावा किया कि प�रधानमंत�री और उनके चीयरलीडर�स जानबू�कर इस मंदी के कारणों को नजरअंदाज कर रहे हैं। �क अग�रणी वित�तीय सूचना सेवा कंपनी इंडिया रेटिंग�स �ंड रिसर�च की ‘लेबल डायनामिक�स ऑफ इंडियन स�टेट�स’ नामक नई रिपोर�ट इसके वास�तविक कारण का ख�लासा करती है, जो कि स�थिर मजदूरी है। रमेश ने कहा, ‘रिपोर�ट में यह दिखाने के लि� आवधिक श�रम बल सर�वेक�षण डेटा का इस�तेमाल किया गया है कि राष�ट�रीय स�तर पर समग�र वास�तविक वेतन (प�रत�येक राज�य में महंगाई के लि� समायोजित करके) वृद�धि पिछले पांच वर�षों में 0.01 प�रतिशत पर स�थिर रही है।’

‘वास�तविक मजदूरी में गिरावट देखी गई’
कांग�रेस नेता ने कहा, ‘हरियाणा, असम और उत�तर प�रदेश के श�रमिकों की तो इसी अवधि में वास�तविक मजदूरी में गिरावट देखी गई है। यह कोई अपवाद नहीं है। लगभग हर साक�ष�य और तथ�य इसी विनाशकारी निष�कर�ष की ओर इशारा कर रहे हैं कि औसत भारतीय आज 10 साल पहले की त�लना में कम खरीदारी कर पा रहा है, उनकी क�रय शक�ति घट गई है। यह भारत के विकास में मंदी का अंतिम मूल कारण है।’ उनके अन�सार, श�रमिकों की वास�तविक मजदूरी 2014-2023 के बीच स�थिर रही है। वर�ष 2019-2024 के बीच वास�तव में इसमें गिरावट ही आई है।

‘निजी निवेश स�स�त बना ह�आ’
जयराम रमेश ने कहा कि मनमोहन सिंह के कार�यकाल में खेतिहर मजदूरों की वास�तविक मजदूरी हर साल 6.8 प�रतिशत की दर से बढ़ी, जबकि प�रधानमंत�री मोदी के कार�यकाल में कृषि मजदूरों की वास�तविक मजदूरी में हर साल 1.3 प�रतिशत की गिरावट आई। उन�होंने कहा, ‘इसमें कोई आश�चर�य की बात नहीं है कि जीडीपी वृद�धि के तिमाही आंकड़ों से पता चलता है कि निजी निवेश स�स�त बना ह�आ है। हमारी मध�यम और दीर�घकालिक आर�थिक क�षमता तेजी से खत�म हो रही है। इसका मूल कारण करोड़ों श�रमिकों की स�थिर मजदूरी है।’ रमेश ने सवाल किया कि इस गंभीर हकीकत को कब तक नजरअंदाज किया जाता रहेगा?

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