मध्यप्रदेश

कांग�रेस ने कहा& आदिवासियों के हितैषी होने का केवल दिखावा कर रहे PM मोदी

नई दिल�ली
कांग�रेस ने केंद�र पर आदिवासियों को न�याय से वंचित करने के प�रयासों में ‘‘पूरी ताकत� लगा देने का आरोप लगाते ह�� श�क�रवार को कहा कि ‘धरती आबा जनजातीय ग�राम उत�कर�ष अभियान’ (डी�जेजीयू�) वन अधिकार अधिनियम का मजाक है �वं सरकार के पाखंड को दर�शाता है। विपक�षी दल ने यह भी आरोप लाया कि डी�जेजीयू� ‘‘विश�द�ध मन�वादी अंदाज� में इन सम�दायों को केवल जंगलों में रहने वाले ‘वनवासी’ के रूप में देखता है, जो अपने आप में राजनीतिक और आर�थिक शक�ति होने के बजाय सिर�फ श�रमिक हैं। कांग�रेस महासचिव (संचार प�रभारी) जयराम रमेश ने कहा कि आज धरती आबा भगवान बिरसा म�ंडा की 150वीं जयंती है जो भारत के महानतम सपूतों में से �क और स�वशासन �वं सामाजिक न�याय के प�रबल समर�थक थे।

प�रधानमंत�री आदिवासियों के हितैषी होने का दिखावा कर रहे
रमेश ने �क बयान जारी कर कहा, ‘‘इस अवसर पर ‘नॉन बायोलॉजिकल’ प�रधानमंत�री बिहार के जम�ई में आदिवासियों के हितैषी होने का दिखावा कर रहे हैं, जबकि उनकी सरकार आदिवासियों को न�याय से वंचित करने के प�रयासों में पूरी ताकत लगा रही है।� उन�होंने कहा, ‘‘धरती आबा जनजातीय ग�राम उत�कर�ष अभियान (डी�जेजीयू�) उनके इसी पाखंड को दर�शाता है। यह है तो भगवान बिरसा म�ंडा के नाम पर लेकिन यह वन अधिकार अधिनियम का पूरी तरह से मजाक बनाता है।� रमेश ने कहा कि मनमोहन सिंह सरकार द�वारा पारित वन अधिकार अधिनियम (�फआर� 2006) �क क�रांतिकारी कानून था और इसने वनों से संबंधित शक�ति �वं अधिकार को वन विभाग से ग�राम सभा को हस�तांतरित किया था। उन�होंने बताया कि परंपरा से हटकर �क और कदम उठाते ह�� जनजातीय कार�य मंत�रालय को कानून के क�रियान�वयन के लि� नोडल प�राधिकरण के रूप में सशक�त बनाया गया। रमेश ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम ने आदिवासी सम�दाय और ग�राम सभाओं को वनों पर शासन और प�रबंधन का अधिकार दिया था जो वनों के लोकतांत�रिक शासन को स�निश�चित करने के लि� �क बड़ा स�धार था। उन�होंने कहा, ‘‘लेकिन इस क�रांति के बाद नरेन�द�र मोदी की प�रति-क�रांति आई।� उन�होंने कहा, ‘‘डी�जेजीयू� इस �तिहासिक कानून और वन प�रशासन में लोकतांत�रिक स�धार को मूल रूप से खत�म कर देता है।�

रमेश ने कहा कि यह �फआर� के कार�यान�वयन में पर�यावरण, वन और जलवाय� परिवर�तन मंत�रालय को अधिकार देकर जनजातीय मामलों के मंत�रालय के अधिकार को कमजोर करता है। उन�होंने बताया कि �फआर� के वैधानिक निकायों – अर�थात ग�राम सभा, उप-मंडल समिति, जिला स�तरीय समिति और राज�य स�तरीय निगरानी समिति – को सशक�त बनाने के बजाय डी�जेजीयू� ने जिला और उप-मंडल स�तरों पर �फआर� की इकाइयों का �क विशाल समानांतर संस�थागत तंत�र बनाया है और उन�हें बड़े स�तर पर धनराशि �वं संविदा कर�मचारियों से लैस किया है। रमेश ने कहा कि वे सीधे जनजातीय मामलों के मंत�रालय और राज�य जनजातीय कल�याण विभागों के केंद�रीकृत नौकरशाही नियंत�रण के अधीन हैं और �फआर� की वैधानिक निकायों के प�रति उनकी जवाबदेही नहीं है। उन�होंने कहा कि डी�जेजीयू� राज�य जनजातीय कल�याण विभागों द�वारा ग�राम सभाओं के �फआर� कार�यान�वयन और सी�फआर प�रबंधन गतिविधियों के लि� तकनीकी �जेंसियों/डोमेन विशेषज�ञों/कॉर�पोरेट �नजीओ को शामिल करता है और उनकी सेवा�ं लेता है।
रमेश ने तर�क दिया कि इन �फआर� इकाइयों को वे काम करने हैं जिन�हें �फआर� वैधानिक निकायों को कानून के तहत करना आवश�यकता हैं और इन वैधानिक निकायों को इन �फआर� इकाइयों के उप अंग के रूप में छोड़ दिया गया है। उन�होंने कहा कि �फआर� की इन इकाइयों को नाममात�र के �फआर� निकायों का आदेश मानने तक सीमित कर दिया गया है। उन�होंने कहा, ‘‘इसमें शामिल आर�थिक और सामाजिक पहल�ओं पर ध�यान दि� बिना �सा किया गया है, जबकि इसके लि� भारी भरकम बजट आवंटित किया गया है (प�रत�येक सी�फआर के लि� तकनीकी �जेंसियों को �क लाख र�पये)। उदाहरण के लि�, मध�य प�रदेश में भाजपा सरकार ने ‘वनमित�र’ �प बनाने के लि� ‘महाराष�ट�र नॉलेज कंपनी लिमिटेड’ (�मकेसी�ल) को निय�क�त किया जिसने �फआर� दावों को प�रस�त�त करने की पारदर�शी प�रक�रिया को �क अस�पष�ट, ऑनलाइन प�रक�रिया में बदल दिया और इसकी जिम�मेदारी तकनीकी ऑपरेटरों ने संभाली है।� उन�होंने बताया कि इसके परिणामस�वरूप तीन लाख दावे खारिज कर दि� ग�। रमेश ने कहा कि �सी तकनीकी �जेंसियों की भागीदारी के कारण बड़े पैमाने पर �सी घटना�ं होने से आदिवासी सम�दाय चिंतित है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button