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व्यापार

रुपया 2 साल में सबसे ज्यादा गिरा, 1 डॉलर की कीमत ₹86.61 हुई, जानिए क्यों कमजोर हुई भारतीय मुद्रा की हालत?

शेयर बाजार और भारतीय रुपये में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है। आज अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये में करीब 2 साल की सबसे बड़ी गिरावट आई। रुपया 57 पैसे टूटकर 86.61 (अनंतिम) प्रति डॉलर के नए सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ। जेफरीज का अनुमान है कि मध्यावधि में रुपया 88 तक गिर सकता है। आखिर क्या वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है? रुपये के गिरने से आपकी जेब पर क्या असर पड़ेगा? आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब।

करेंसी की कीमत में तेजी और गिरावट का गणित समझें

विदेशी मुद्रा बाजार में किसी भी करेंसी की कीमत उस करेंसी की मांग और उसकी आपूर्ति के आधार पर तय होती है। यह उसी तरह है जैसे बाजार में किसी अन्य उत्पाद की कीमत तय होती है। जब किसी उत्पाद की मांग बढ़ती है जबकि उसकी आपूर्ति स्थिर रहती है, तो इससे उत्पाद की कीमत बढ़ जाती है जिससे उपलब्ध आपूर्ति सीमित हो जाती है। दूसरी ओर, जब किसी उत्पाद की मांग गिरती है जबकि उसकी आपूर्ति स्थिर रहती है, तो यह विक्रेताओं को पर्याप्त खरीदारों को आकर्षित करने के लिए उत्पाद की कीमत कम करने के लिए मजबूर करता है। कमोडिटी बाजार और विदेशी मुद्रा बाजार के बीच एकमात्र अंतर यह है कि विदेशी मुद्रा बाजार में वस्तुओं के बजाय अन्य मुद्राओं के साथ मुद्राओं का आदान-प्रदान किया जाता है।

रुपये में गिरावट के पीछे क्या कारण है?

रुपये में गिरावट का मौजूदा दौर मुख्य रूप से विदेशी निवेशकों द्वारा भारत से पैसा निकालने के कारण है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ा है। वैश्विक निवेशक अपने निवेश को अलग-अलग देशों में ले जा रहे हैं, क्योंकि केंद्रीय बैंक अलग-अलग स्तरों पर अपनी मौद्रिक नीतियों का पुनर्गठन कर रहे हैं। इसके अलावा अमेरिकी डॉलर इंडेक्स लगातार मजबूत हो रहा है। छह मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की ताकत को मापने वाला डॉलर इंडेक्स 109.01 पर पहुंच गया है। 10 साल के अमेरिकी बॉन्ड पर यील्ड भी बढ़कर अप्रैल 2024 के 4.69 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। इसका असर भारतीय रुपये पर भी देखने को मिल रहा है। इसके चलते रुपया लगातार कमजोर हो रहा है।

रुपये के गिरने का क्या होगा असर?

रुपये के गिरने का असर भारतीय अर्थव्यवस्था, आम जनता और व्यापार जगत पर पड़ेगा। रुपये के कमजोर होने से विदेश से आयात करना महंगा हो जाएगा। इससे जरूरी वस्तुओं के दाम बढ़ सकते हैं। यानी आप पर महंगाई का बोझ बढ़ेगा। उदाहरण के लिए, अक्टूबर में आयातक को 1 डॉलर के लिए 83 रुपये चुकाने पड़ते थे, लेकिन अब उसे 86.61 रुपये खर्च करने होंगे। भारत बड़े पैमाने पर कच्चे तेल का आयात करता है। डॉलर के मजबूत होने से कच्चे तेल का आयात महंगा हो जाएगा। इससे व्यापार घाटा बढ़ेगा। रुपये के कमजोर होने से विदेशी निवेशक शेयर बाजार से पैसा निकाल लेते हैं। इसका असर अभी दिख रहा है। रुपये के कमजोर होने से विदेश यात्रा या विदेश में पढ़ाई के लिए बजट बढ़ जाएगा। वहीं, रुपये के कमजोर होने से भारतीय निर्यातकों को फायदा होता है, क्योंकि विदेशी बाजार में उनके उत्पाद सस्ते हो जाते हैं।

शेयर बाजार और भारतीय रुपये में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है। आज अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये में करीब 2 साल की सबसे बड़ी गिरावट आई। रुपया 57 पैसे टूटकर 86.61 (अनंतिम) प्रति डॉलर के नए सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ। जेफरीज का अनुमान है कि मध्यावधि में रुपया 88 तक गिर सकता है। आखिर क्या वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है? रुपये के गिरने से आपकी जेब पर क्या असर पड़ेगा? आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब।

करेंसी की कीमत में तेजी और गिरावट का गणित समझें

विदेशी मुद्रा बाजार में किसी भी करेंसी की कीमत उस करेंसी की मांग और उसकी आपूर्ति के आधार पर तय होती है। यह उसी तरह है जैसे बाजार में किसी अन्य उत्पाद की कीमत तय होती है। जब किसी उत्पाद की मांग बढ़ती है जबकि उसकी आपूर्ति स्थिर रहती है, तो इससे उत्पाद की कीमत बढ़ जाती है जिससे उपलब्ध आपूर्ति सीमित हो जाती है। दूसरी ओर, जब किसी उत्पाद की मांग गिरती है जबकि उसकी आपूर्ति स्थिर रहती है, तो यह विक्रेताओं को पर्याप्त खरीदारों को आकर्षित करने के लिए उत्पाद की कीमत कम करने के लिए मजबूर करता है। कमोडिटी बाजार और विदेशी मुद्रा बाजार के बीच एकमात्र अंतर यह है कि विदेशी मुद्रा बाजार में वस्तुओं के बजाय अन्य मुद्राओं के साथ मुद्राओं का आदान-प्रदान किया जाता है।

रुपये में गिरावट के पीछे क्या कारण है?

रुपये में गिरावट का मौजूदा दौर मुख्य रूप से विदेशी निवेशकों द्वारा भारत से पैसा निकालने के कारण है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ा है। वैश्विक निवेशक अपने निवेश को अलग-अलग देशों में ले जा रहे हैं, क्योंकि केंद्रीय बैंक अलग-अलग स्तरों पर अपनी मौद्रिक नीतियों का पुनर्गठन कर रहे हैं। इसके अलावा अमेरिकी डॉलर इंडेक्स लगातार मजबूत हो रहा है। छह मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की ताकत को मापने वाला डॉलर इंडेक्स 109.01 पर पहुंच गया है। 10 साल के अमेरिकी बॉन्ड पर यील्ड भी बढ़कर अप्रैल 2024 के 4.69 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। इसका असर भारतीय रुपये पर भी देखने को मिल रहा है। इसके चलते रुपया लगातार कमजोर हो रहा है।

रुपये के गिरने का क्या होगा असर?

रुपये के गिरने का असर भारतीय अर्थव्यवस्था, आम जनता और व्यापार जगत पर पड़ेगा। रुपये के कमजोर होने से विदेश से आयात करना महंगा हो जाएगा। इससे जरूरी वस्तुओं के दाम बढ़ सकते हैं। यानी आप पर महंगाई का बोझ बढ़ेगा। उदाहरण के लिए, अक्टूबर में आयातक को 1 डॉलर के लिए 83 रुपये चुकाने पड़ते थे, लेकिन अब उसे 86.61 रुपये खर्च करने होंगे। भारत बड़े पैमाने पर कच्चे तेल का आयात करता है। डॉलर के मजबूत होने से कच्चे तेल का आयात महंगा हो जाएगा। इससे व्यापार घाटा बढ़ेगा। रुपये के कमजोर होने से विदेशी निवेशक शेयर बाजार से पैसा निकाल लेते हैं। इसका असर अभी दिख रहा है। रुपये के कमजोर होने से विदेश यात्रा या विदेश में पढ़ाई के लिए बजट बढ़ जाएगा। वहीं, रुपये के कमजोर होने से भारतीय निर्यातकों को फायदा होता है, क्योंकि विदेशी बाजार में उनके उत्पाद सस्ते हो जाते हैं।

 

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