राम काज के लिए हनुमान जी ने दिव्य विराट स्वरूप धारण किया

हनुमान जी का पूरा जीवन राम कार्यों के लिए समर्पित है इसलिए कलयुग में भी उनकी महिमा सर्वाधिक वंदनीय है : विश्वेश्वरी देवी
 
राम काज के लिए हनुमान जी ने दिव्य विराट स्वरूप धारण किया

संस्कार उत्सव समिति के तत्वावधान में विट्ठल मार्केट दशहरा मैदान में साप्ताहिक श्रीराम कथा जे अंतिम दिवस कथा वाचक साध्वी विश्वेश्वरी देवी भगवान का हनुमान से मिलन, लंका दहन और राम रावण युद्ध की कथाओं का वाचन किया। साध्वी ने बताया कि किष्किंधा में श्री हनुमान जी का भगवान राम से जो मिलन हुआ वह जीवात्मा का परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। सुग्रीव से मित्रता कराकर श्री हनुमान जी ने जीव के कष्टों को मिटाने के लिए भगवान से संबंध जरूरी है, यह समझाया। बाली का वध करके भगवान ने मित्र धर्म की शिक्षा दी और सुग्रीव को राजा बनाया। सुग्रीव ने श्री सीता जी की खोज के लिए अपनी समस्त वानर सेना को भेजा किंतु श्री हनुमान जी ही भगवान की कृपा को प्राप्त करके गए और श्री सीता जी की खोज की। सुंदरकांड के प्रारंभिक में ही श्री हनुमान जी के दिव्य विराट स्वरूप का दर्शन होता है। जो राम कार्य के लिए हनुमान जी ने धारण किया। श्री हनुमान जी का संपूर्ण जीवन राम कार्यों के लिए समर्पित है, इसलिए आज कलयुग में भी श्री हनुमान जी की महिमा सर्वाधिक वंदनीय है। हनुमान जी से बड़ा रामसेवक ना कभी हुआ है और ना कभी हो सकता है। सुरसा और लंकिनी जैसे विघ्नों को पार करते हुए हनुमान जी लंका पहुंचे। यहां विभीषण से मिलकर श्री जानकी जी का पता लेकर श्री हनुमान जी ने अशोक वाटिका में माता सीता का दर्शन किया। संकेत यह है कि यदि भाव सच्चा हो तो सुदूर विघ्नों के बीच जाकर भी जीव भक्ति देवी की कृपा प्राप्त कर सकता है। जानकी जी को भगवान का संदेश देकर एवं लंका को जलाकर हनुमान जी भगवान के पास वापस आए। कथा में कैबिनेट मंत्री विश्वास सारंग, पूर्व मंत्री व विधायक पीसी शर्मा, पूर्व मंत्री व विधायक सुरेंद्र पटवा, विधायक रामेश्वर शर्मा, रोहित चौहान, शांतनु शर्मा, डॉ सुरजीत सिंह चौहान, दीप्ती चौहान, राकेश शर्मा, पं. विष्णु राजौरिया, प्रेम श्रोती, गुड्डू चौहान व रामेश्वर अग्रवाल ने व्यासपीठ की पूजा की। कथा समापन उपरांत महाप्रसादी व भंडारे का आयोजन हुआ जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की।

राम-रावण युद्ध में सत्य की विजय हुई

हनुमान जी के लंका से वापस आने पर रणनीति बनाकर भगवान सेना सहित लंका में पहुंचे। जहां राम-रावण युद्ध प्रारंभ हुआ। जो धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य का युद्ध हुआ। भगवान को विजयश्री प्राप्त हुई क्योंकि यह सनातन सिद्धांत है कि विजय हमेशा सत्य की ही होती है। रावण वध के पश्चात भगवान लौटकर अयोध्या आए जहां भगवान का राजतिलक किया गया। रामराज्य दोषों, दुर्गुणों, दुख-दर्द को मिटा कर सुखी एवं समृद्ध जीवन की आशा से परिपूर्ण है। समस्त भक्त जनों ने रामराज्य तिलक में भाव से सम्मिलित होकर सुखी एवं समृद्ध राष्ट्र की कामना करते हुए एक दूसरे को बधाई दी। श्री राम राजतिलक के साथ ही श्री राम कथा ने विश्राम प्राप्त किया।

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