विवेक की जागृति द्वारा शाश्वत सत्य का ज्ञान ही सहजयोग की नींव है

सभी धर्म एक ही वृक्ष की विभिन्न शाखाएं हैं
 


एक बार भगवान गौतम बुद्ध एकांत स्थल श्रावस्ती में विश्राम कर रहे थे। उसी समय  श्रावस्ती नरेश चंद्रचूड़ उनके दर्शनों के लिए उपस्थित हुए। महाराज चंद्रचूड़ एक कर्त्तव्यपरायण राजा थे। परन्तु वे अपने कर्तव्यों का वहन करते समय धर्म और विभिन्न  संप्रदायों की विविध मान्यताओं से भ्रमित हो गये थे और अपनी समस्या के समाधान के लिए भगवान बुद्ध के समक्ष एक साधारण  व्यक्ति की तरह उपस्थित हुए तथा उन्हें आदरपूर्वक प्रणाम किया। एक राजा होकर भी उनके मन में भगवान बुद्ध के प्रति संपूर्ण श्रद्धा व समर्पण का भाव था। भगवान बुद्ध सोच रहे थे कि, राजा चंद्रचूड एक  जिज्ञासु साधक हैं, और राजा के समाधान का अर्थ है, संपूर्ण प्रजा का समाधान। अतः तथागत उन्हें उस स्थान पर ले कर गए जहां  एक बड़ा सा हाथी था और सभी जन्मांध विद्यार्थी उस पर चर्चा कर रहे थे। तथागत बुद्ध राजा चंद्रचूड को लेकर उन विद्यार्थियों के पास पहुँचे और बोले, बंधुओं, आपने क्या कभी हाथी देखा है? सभी ने एक साथ उत्तर दिया नहीं। चलो, आज हम आपको हाथी का दर्शन करवाते हैं। सभी विद्यार्थी अपने हाथ से स्पर्श कर हाथी का अवलोकन करने लगे, थोडी देर बाद 'तथागत' ने पूछा हाथी कैसा है? कोई एक बोला हाथी  खंबे जैसा है, उसने हाथी के पैर को स्पर्श किया था। जिसने कान को स्पर्श किया उसने कहा सूप जैसा । जिसने मस्तक को स्पर्श किया था वो बोला हाथी 'पत्थर' जैसा है। इनके उत्तर सुनकर राजा चंद्रचूड़ हँसने लगे, बोले भगवन, ये सभी हाथी के कोई एक अंग को ही बता रहे हैं। उस पर तथागत बुद्ध बोले, महाराज धर्म का सनातन स्वरूप भी ऐसा ही है, अपना विवेक जागृत कर जब हम सभी धर्म और पंथों का सूक्ष्म अभ्यास करते हैं तब ही हम उस परम तत्व को जान सकते हैं।  
     परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी प्रणित सहजयोग भी सभी धर्मों का सार है। प. पू. श्री माताजी कहते हैं कि, आपका विवेक जागृत करने के लिये आपको अपना सूक्ष्म तंत्र समझना पडेगा। सहजयोग स्व के तंत्र को समझने का विज्ञान है। श्री माताजी के समक्ष कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्मसाक्षात्कार -प्राप्ति के पश्चात् जब आपका प्रथम चक्र मूलाधार स्वच्छ और पोषित हो जाता है तो मूलाधार स्वामी श्री गणेश जी की अनुकंपा से आपमें  सुक्ष्म-पवित्र विवेक आ जाता है। उस विवेक के आधार पर आप स्वयं ही जान जाएंगे कि सभी धर्मों का एक ही सार है। धर्म का वृक्ष एक ही है मात्र शाखाएं अलग अलग हैं। इस शाश्वत सत्य का ज्ञान बाह्य आडंबरों, कर्मकाण्ड व कट्टरता से मुक्ति प्रदान करता है तथा हमारा हृदय विशाल व प्रेम का अक्षय स्रोत बन जाता है। 
सहजयोग से संबंधित  जानकारी निम्न साधनों से प्राप्त कर सकते हैं। यह पूर्णतया निशुल्क है। टोल फ्री नं – 1800 2700 800 बेवसाइट‌ - sahajayoga.org.in यूट्यूब चैनल – लर्निंग सहजयोगा प्रति शनिवार शाम 06:30 बजे

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