नई दिल्ली
चंद्रयान-3 को चांद की सतह पर उतरे हुए एक साल हो चुके हैं। इससे एक दिन पहले यानी 22 अगस्त को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चांद की कुछ तस्वीरें साझा की हैं। खास बात है कि ये तस्वीरें विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर से ली गईं हैं। 14 जुलाई को चंद्रयान-3 ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से चांद का सफर शुरू किया था, जो 23 अगस्त को दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग के साथ पूरा हुआ।
नेशनल स्पेस एजेंसी ने गुरुवार को लिखा, ‘चंद्रयान-3 की लैंडिंग एनिवर्सरी यानी कल विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर की तरफ से खींची गईं हजारों तस्वीरें ISRO सामने रखने वाला है।’ संगठन ने कहा, ‘ये तस्वीरें विक्रम पर लैंडर इमेजर (LI) और रोवर इमेजर (RI) से ली गईं हैं। पहली तीन तस्वीरें LI से हैं और आखिर वाली RI से है।’
आज मनाया जाएगा नेशनल स्पेस डे
चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग की याद में सरकार ने 23 अगस्त को नेशनल स्पेस डे मनाने का ऐलान किया था। भारत शुक्रवार को अपना पहला अंतरिक्ष दिवस मनाने जा रहा है। जिस स्थान पर सॉफ्ट लैंडिंग हुई, उसे शिव शक्ति पॉइंट कहा गया।
चंद्रयान-3 मिशन ने चंद्रमा के शुरुआती विकास का खोला राज
भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL), अहमदाबाद और ISRO के वैज्ञानिकों की एक टीम ने अपने शोध में कहा है कि चंद्रयान-3 मिशन ने चंद्रमा के शुरुआती विकास का राज खोला है। टीम ने अपने शोध में कहा कि चंद्रयान-3 मिशन के प्रज्ञान रोवर से मिली जानकारी के अनुसार चंद्रमा की सतह मैग्मा के महासागर से ढका हुआ था। यह विश्लेषण चंद्रमा पर मिट्टी की माप को लेकर था। ये आंकड़े प्रज्ञान रोवर ने चांद की सतह पर रिकॉर्ड किए थे।
इन आंकड़ों का शोधकर्ताओं ने विश्लेषण किया जिससे पता चला कि चंद्रमा की मिट्टी एक प्रकार की चट्टान फेरोअन अनोर्थोसाइट से बनी है। प्रज्ञान रोवर पर अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस) द्वारा किए गए मापों का उपयोग करके दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के पास चंद्र मिट्टी की पहली इन-सीटू मौलिक प्रचुरता की रिपोर्ट की है।
‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन ने चंद्र मैग्मा महासागर परिकल्पना का समर्थन करने वाले साक्ष्य प्रदान किए हैं, जो भवष्यिवाणी करता है कि आदिम चंद्र क्रस्ट हल्के एनोर्थाइट प्लेगियोक्लेज़ के तैरने के परिणामस्वरूप बना था लेकिन एपीएक्सएस ने मैग्नीशियम युक्त खनिजों की अधिक प्रचुरता का भी पता लगाया, जो इसके नर्मिाण के दौरान दक्षिणी ध्रुव-ऐटकेन बेसिन से निकाले गए गहरे परत के पदार्थ के योगदान को बताता है।
मनाया जाएगा नेशनल स्पेस डे
चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग ने देश को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस का तोहफा भी दे दिया था। शुक्रवार को देश पहली बार इस जश्न का गवाह होने वाला है। PIB के अनुसार, कार्यक्रम का आयोजन नई दिल्ली में भारत मंडपम के प्लेनरी हॉल में होगा, जिसका विषय है ‘चंद्रमा को छूते हुए जीवन को छूना: भारत की अंतरिक्ष गाथा।’ चंद्रयान-3 की लैंडिंग की जगह को शिव शक्ति पॉइंट नाम दिया गया।
चंद्रयान-3 से मिलते हैं
चंद्रयान-3 को चंद्रयान-2 का फॉलो ऑन मिशन कहा गया था। ISRO के तत्कालीन अध्यक्ष के सिवन चंद्रयान-2 की अगुवाई कर रहे थे, लेकिन कुछ तकनीकी परेशानी के चलते भारत तब उपलब्धि हासिल करने से चूक गया था। चंद्रयान-3 में एक लैंडर (विक्रम) और एक रोवर (प्रज्ञान) शामिल थे। इसे LVM3 की मदद से SDSC SHAR, श्रीहरिकोटा से 14 जुलाई 2023 को लॉन्च (Chandrayaan-3 launch date) किया गया था।
लैंडर के पेलोड में ChaSTE यानी चंद्रास सर्वेस थर्मोफिजिकल एक्सपेरिमेंट, इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सीजमिक एक्टिविटी (ILSA), लैंगमुर प्रोब (LP) शामिल थे। वहीं, रोवर के पास अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) और लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS) था।
आसान भाषा में समझें, तो चंद्रयान-3 में स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल (LM), प्रोपल्शन मॉड्यूल (PM) और रोवर है। जिसका उद्देश्य अंतरग्रहीय मिशनों के लिए जरूरी नई तकनीकों को विकसित और प्रदर्शित करना है।
क्यों जरूरी था चंद्रयान-3 मिशन
चंद्रयान-3 मिशन 3 वजहों से बेहद जरूरी था। पहला चांद की सतह पर सुरक्षा और सॉफ्ट लैंडिंग को दिखाना, रोवर को चांद पर चलते हुए दिखाना और यथास्थित वैज्ञानिक प्रयोग करना।
‘प्रज्ञान’ और ‘विक्रम’ ने देश को क्या दिया
खास बात है कि चंद्रयान-3 को चांद पर सिर्फ एक दिन गुजारने के लिए डिजाइन किया था। अब गौरतलब है कि चांद पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है। लैंडिंग के बाद महज 1 सप्ताह में ही चंद्रयान-3 ने चांद पर सल्फर, एल्युमिनियम (AI), कैल्शियम (Ca), आयरन (Fe), क्रोमियम (Cr), टाइटेनियम (Ti), मैन्गेनीज (Mn), ऑक्सीजन (O) और सिलिकॉन (Si) के होने की पुष्टि कर दी थी। ISRO ने संबंध में एक चार्ट भी जारी किया था। शुक्रवार को ही ISRO चंद्रयान-3 की फाइंडिंग्स से जुड़ीं अहम जानकारियां साझा करने जा रहा है।
दो बार हुई सॉफ्ट लैंडिंग
23 अगस्त 2023 को चांद पर लैंडिंग के बाद ISRO की तरफ से लगातार फोटो और अपडेट्स दिए जा रहे थे। इन्हीं अपडेट्स में एक ‘हॉप एक्सपेरिमेंट’ भी शामिल था, जिसे पूरा करने में विक्रम सफल रहा था। दरअसल, ISRO ने कहा था कि जब लैंडर को इंजन शुरू करने के लिए कमांड दी गई, तो वह करीब 40 सेमी ऊपर उठा और 30-40 सेमी दूर जाकर लैंड हुआ। स्पेस एजेंसी का कहना था कि विक्रम ने ‘एक बार फिर चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की है।’
इस एक्सपेरिमेंट के सफल होने का मतलब था कि भविष्य में अंतरिक्ष यान का इस्तेमाल पृथ्वी पर नमूने वापस लाने या मानव मिशन के लिए किया जा सकता था।
चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला एलीट क्लब
भारत के अलावा महज तीन ही देश ऐसे हैं, जो अब तक चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता हासिल कर चुके हैं। इनमें रूस, अमेरिका, चीन का नाम शामिल है।
रूस: चांद पर सबसे पहले लैंडिंग का कारनामा करने वाले देश का नाम रूस है। रूस के लूना-2 ने 12 सितंबर 1959 को चांद की सतह पर कदम रक दिया था। हालांकि, यह हार्ड लैंडिंग थी और रूस को सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता लूना-9 के जरिए 3 फरवरी 1966 में मिली थी। इसके बाद 1969 में भी रूस ने सॉफ्ट लैंडिंग की थी।
अमेरिका: 1966 में रूस के लैंडिंग के कुछ महीनों बाद ही अमेरिका ने भी सर्वेयर-1 की मदद से सॉफ्ट लैंडिंग की थी। Atlas-Centaur की मदद से इसे अमेरिका के केप कार्निवल से 30 मई 1966 में लॉन्च किया गया था।
चीन: चीन ने Chang’e-4 की मदद से चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की उपलब्धि हासिल की थी। सिचुआन प्रांत के शिचांग सैटेलाइट लॉन्च सेंटर से 8 दिसंबर 2018 को लॉन्च होने वाले Chang’e-4 ने 3 जून, 2019 को सॉफ्ट लैंडिंग की थी।
गहरी नींद में चंद्रयान-3
चंद्रयान-3 की लैंडिंग की तारीख चुनने में बेहद सावधानी बरती गई थी, ताकि इसे चांद पर दिन की शुरुआत के साथ ही अंजाम दिया जा सके। महज 1 दिन में ही प्रज्ञान रोवर ने चांद पर 103 मीटर की दूरी तय की थी। बीते साल सितंबर में इसरो ने बताया था कि चांद पर सूर्य के अस्त होने के साथ ही लैंडर और रोवर को सुला दिया गया है। एजेंसी ने कहा था कि उन्हें ‘स्लीप मोड’ में रख दिया गया है और सोलर पावर कम होने के बाद दोनों एक दूसरे के पास सो जाएंगे।
हालांकि, इसरो ने उम्मीद भी जताई थी कि चांद पर अगला दिन शुरू होने के बाद वे फिर से जाग जाएंगे। स्पेस एजेंसी ने तब 22 सितंबर के आसपास दोनों के दोबारा जागने की उम्मीद जताई थी। दरअसल, लैंडर और रोवर को बैटरी चार्ज करने और काम करने के लिए सौर ऊर्जा की जरूरत होती है। चांद पर रात के समय तापमान माइनस 200 डिग्री सेल्सियस से माइनस 250 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, विक्रम और प्रज्ञान की आराम करती हुईं तस्वीरें भी सामने आईं थीं। इंडिया टुडे की 2 मई 2024 को प्रकाशित एक रिपोर्ट में स्वतंत्र शोधकर्ता चंद्र तुंगतुर्थी के हवाले से विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर की तस्वीरें भी साझा की थीं।
क्यों फेल हुआ चंद्रयान-2
22 जुलाई 2019 को लॉन्च हुआ चंद्रयान-2 अपने मिशन में पूरी तरह से कामयाब नहीं हो सका था। 6 सितंबर 2019 को विक्रम लैंडर क्रैशलैंडिंग का शिकार हुआ। खास बात है कि लैंडिंग की जगह से महज 400 मीटर पहले ही एजेंसी का लैंडर से संपर्क टूट गया। कहा जाता है कि विक्रम लैंडर की क्रैश लैंडिंग होने की बड़ी वजह इसका 410 डिग्री पर मुड़ना था, जो पहले 55 डिग्री तय था। ISRO के अधिकारियों का कहना था कि लैंडर की वेलोसिटी को चार चरणों में 6 हजार किमी प्रतिघंटा से 0 किमी प्रतिघंटा पर आना था, लेकिन टचडाउन से महज कुछ मिनटों पहले ही स्पेस एजेंसी का संपर्क टूट गया।
आगे ISRO का क्या है प्लान
पीटीआई भाषा के अनुसार, ISRO चीफ ने मंगलवार को कहा कि अंतरिक्ष एजेंसी ने अगले चरण के चंद्र मिशन – चंद्रयान 4 और 5 के लिए डिजाइन पूरा कर लिया है और इस सिलसिले में सरकार से मंजूरी लेने की प्रक्रिया में जुटी हुई है। चंद्रयान-4 मिशन में चंद्रमा की सतह पर सहजता से उपकरण उतारने के बाद पृथ्वी के इस उपग्रह की चट्टानों और मिट्टी को धरती पर लाना, चंद्रमा से एक अंतरिक्ष यान को प्रक्षेपित करना, चंद्रमा की कक्षा में अंतरिक्ष ‘डॉकिंग’ प्रयोग का प्रदर्शन करना और नमूनों को वापस लाना शामिल है।
सोमनाथ ने यहां अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद और इंडियन स्पेस एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से कहा, ‘हमारे पास चांद पर जाने के लिए कई मिशन हैं। चंद्रयान-3 मिशन पूरा हो चुका है। अब चंद्रयान 4 और 5 का डिजाइन तैयार हो चुका है और हम सरकार से मंजूरी मांग रहे हैं।’ इससे पहले, इसरो के अधिकारियों ने कहा था कि चंद्रयान-4 मिशन का लक्षित प्रक्षेपण वर्ष 2028 है।
सोमनाथ ने यह भी कहा कि अंतरिक्ष एजेंसी अगले पांच वर्षों में 70 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की योजना बना रही है, जिसमें सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पृथ्वी की निचली कक्षा के लिए उपग्रहों का एक समूह भी शामिल है। उन्होंने कहा कि इन 70 उपग्रहों में ‘नाविक’ क्षेत्रीय दिशा सूचक प्रणाली के लिए चार उपग्रह शामिल हैं जो अवस्थिति निर्धारण, दिशा सूचना सेवा प्रदान करेंगे।
साथ ही, इनसैट 4डी मौसम उपग्रह, रिसोर्ससैट श्रृंखला के उपग्रह, रिमोट सेंसिंग और उच्च रिजोल्यूशन इमेजिंग के लिए कार्टोसैट उपग्रह शामिल हैं। सोमनाथ ने कहा कि अंतरिक्ष एजेंसी इलेक्ट्रिक प्रणोदन प्रणाली और ‘क्वांटम की’ वितरण प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करने के लिए ओशनसैट श्रृंखला के उपग्रहों और प्रौद्योगिकी प्रदर्शन उपग्रह एक और दो को विकसित करने की भी योजना बना रही है।
सोमनाथ ने कहा कि अंतरिक्ष एजेंसी अगले पांच वर्षों में पृथ्वी-अवलोकन उपग्रहों की एक श्रृंखला प्रक्षेपित करने की भी योजना बना रही है। इसरो प्रमुख ने कहा कि एजेंसी के पूर्वनियोजित शुक्र ग्रह मिशन को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
उन्होंने कहा, ‘हम मिशन का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं।’ सोमनाथ ने कहा कि गगनयान परियोजना का पहला मानव रहित मिशन इस साल दिसंबर में भेजा जाने वाला है। उन्होंने कहा, ‘सभी प्रणालियां अगले एक से डेढ़ महीने में श्रीहरिकोटा पहुंच जाएंगी, जहां अंतिम परीक्षण और एकीकरण किया जाएगा।’